कभी पूरा न कर सकता । इनमें वैद्य विश्वनाथराव लुखे और श्रीयुत मौलिप्रसादजी का नाम उस फरने योग्य है । कवियर या० मैथिलीशरण गुप्त ने कुछ मराठी पद्यों का हिन्दी रूपान्तर करने में अच्छी सहायता दी है, इसलिये से धन्यवाद के भागी हैं। श्रीयुत पं० लाहीप्रसाद पाण्डेय ने जो साहागता को है, वह अवर्णनीय एवं अत्यन्त प्रशंसा के योग्य है । लेख लिखने में, हस्तलिखित प्रति को दुहराने में; और प्रूफ का संशोधन करने में आपने दिन-रात कटिन परिश्रम किया है। अधिक क्या कहा जाय, घर छोड़ कर महीनों तक आपको इस काम के लिये पूने में रहना पड़ा है । इस सहायता और उपकार का बदला केवल धन्यवाद देने से ही नहीं हो जाता । हृदय जानता है कि मैं मापका फैसा महणी हैं। हिचि० ज० के संपादक श्रीयुत भास्कर रामचन्द्र भालेराव ने तथा और भी अनेक मित्रों ने समय-समय पर यथाशक्फि सहा- यता की है। भाः इन सब महापायों को मैं बान्तरिक धन्यवाद देता हूँ।
एक वर्ष से अधिक समग तक इस अन्य के साथ मेरा अहोरान राहयास रहा है। सोते-जागते इसी अन्य के विचारों की मधुर कल्पनाएँ नजरों में पलती रही हैं । इन विचारों से मुझे मानसिक तथा आत्मिक अपार लाभ हुआ है। अतः अगदीश्वर से यही विनय है कि इस प्रन्य के पढ़नेवालों को इससे लाभान्वित होने का मंगलमय आशीर्वाद दीजिये।
《श्रीरामदासी मठ, रायपुर (सी.पी),
देवशयनी ११ मंगलबार, संवत् १९७३ वि०》