भाग १-गीता और महाभारत । पश यू उस उपदेश को भूल गया, जिसे मैंने तुझे युद्ध के प्रारम्भ में बतलाया था। रस उपदेश को फिर से वैसा ही बतलाना भय मेरे लिये भी असंभव है। इसलिये उसके बदले तुझे कुछ अन्य यात बतलाता है" (मभा. अश्व. अनुगीता. १६. ६-३)। यह बात ध्यान देने योग्य है कि अनुगीता में घर्गित कुछ प्रकरमा गीता के प्रकरणों के समान ही है। अनुगीता के इस निर्देश को मिलाकर, महाभारत में भगवद्गीता का सात बार स्पष्ट उल्लेख हो गया है। अर्थात्, अन्तर्गत प्रमाणों से स्पष्टतया सिन्द हो जाता है, कि भगवद्गीता वर्तमान महाभारत का ही एक भाग है। परन्तु सन्देह की गति निरंकुश रहती है, इसलिये उपयुक्त सात निर्देशों से भी कई लोगों का समाधान नहीं होता। ये कहते हैं कि यह कैसे सिद्ध हो सकता है, कि ये उल्लेख भी भारत में पीछे से नहीं जोड़ दिये गये होंगे? इस प्रकार उनके मन में यह शंका ज्यों की त्यों रह जाती है, कि गीता महाभारत का भाग है अथवा नहीं। पहले तो यह शंका केवल इसी समझ से उपस्थित हुई है कि गीता-अन्य मज्ञान-प्रधान है। परन्तु हमने पहले ही विस्तार-पूर्वक पतना दिया है कि यह समझ ठीक नहीं प्रतएव यथार्य में देखा जाय तो अब इस शंका के लिये कोई स्थान ही नहीं रह जाता । समापि, इन प्रमाणों पर ही अपनम्थित न रहते हुए, हम यतमाना चाहते हैं कि अन्य प्रमाणों से भी उक्त शंका की भयथार्थता सिद शे सकती है। जप दो अन्यों के विषय में यह शंका की जाती है कि वे दोनों एक श्रीमन्यकार के हैं या नहीं, तर कान्य-मीमांसक-गण पहले इन दोनों यातों-शब्द साइस्य और अर्थमावश्यका विचार किया करते हैं। शब्दसादृश्य में केवल शन्दोंही का समावेश नहीं होता, किन्तु उसमें भाषा-रचना का भी समावेश किया जाता है। इस ष्टि से विचार करते समय देखना चाहिये, कि गीता की भाषा मार महाभारत की भाषा में कितनी समता है। परन्तु, महाभारत-अंथ बहुत बढ़ा और विस्तीर्ण है इसलिये उसमें मौके मौके पर भाषा की रचना भी भित्र मिल रीति से की गई है। उदाहरणार्थ, कार्यपर्व में कर्ण और अर्जुन के युद्ध का वर्णन पढ़ने से देख पड़ता है, कि उसकी भाषा-रचना अन्य प्रकरणों की भापा से मिल है। अतएव यह निश्चित करना अत्यन्त कठिन है कि गीता और महाभारत की भापा में समता है या नहीं। तथापि, सामान्यतः विचार करने पर इमें परलोक- पासी काशीनापत तैलंग के मत से सहमत होकर कहना पड़ता है, कि गीता की भाषा तथा छंद-रचना प्रार्प भथवा प्राचीन है। उदाहरणार्थ, काशीनाथपंत ने मह बतलाया है कि, भंत (गी. २. १६), भापा (गी. २. ५४), ब्रस (=प्रकृति, • स्वर्गीय काशीनाथ त्र्यम्बक सैलंग-द्वारा रचित भगवद्गीता का अंग्रेजी अनुवाद मेक्स- मूलर साहव-सारा संपादित प्राच्यधर्म-पुस्तकमाला ( Sacred Books of the East Series, Vol. VIII) में प्रकाशित हुआ है। इस ग्रंथ में गीता पर एक टीकात्मक लेख प्रस्ता- बना के तौर पर जोड़ दिया गया है । स्वर्गीय तैला के मतानुसार इस प्रकरण में जो उल्लेख है, वे ( एक स्थान को छोड़) इस प्रस्तावना को लक्ष्य करके ही किये गये हैं।
पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५५४
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