उपसंहार। ४८५ तरह से ववि करूं या संसार में मेरा सच्चा कत्र्तव्य क्या है ? " और, ऐसे प्रश्नों का उत्तर न देकर नीति की उपपत्ति केवल किसी वाल सुख की दृष्टि से ही बतलाना, मानो मनुष्य के मन की उस पशुधृत्ति को, जो स्वभावतः विषयसुख में लिप्त रहा करती है, उत्तेजित करना एवं सची नीतिमत्ता की जड़ पर ही कुल्हाड़ी मारना है।" भय इस बात को अलग करके समझाने की कोई आवश्यकता नहीं, कि यद्यपि गतिा का प्रतिपाय विषय कर्मयोग ही है तो भी उसमें शुद्ध वेदान्त प्यों और कैसे आगया। कान्ट ने इस विषय पर "शुद्ध (व्यसायात्मक) बुद्धि की मीमांसा " और "व्यावहारिक (वासनात्मक) पुद्धि की मीमांसा " नामक दो अलग अलग ग्रन्थ लिखे हैं। परन्तु हमारे औपनिपदिक तत्वज्ञान के अनुसार भगवद्गीता ही में इन दोनों विषयों का समावेश किया गया है। बल्कि श्रद्धामूलक भक्तिमार्ग का भी विवेचन उसी में होने के कारण गीता सब से अधिक प्राय और. प्रमाणभूत हो गई है। मोक्षधर्म को नाभर के लिये एक ओर रख कर केवल कर्म-अकर्म की परीक्षा के नैतिक तत्त्व की दृष्टि से भी जव साम्यबुद्धि ' ही श्रेष्ठ सिद्ध होती है। तब यहाँ पर इस बात का भी थोडासा विचार कर लेना चाहिये, कि गीता के आध्यात्मिक पक्ष को छोड़ कर नीतिशास्त्रों में अन्य दूसरे पंथ कैसे और क्यों निर्माण हुए ? डाक्टर पाल कारसा नामक एक प्रसिद्ध अमेरिकन अन्यकार अपने नीतिशास्त्र- Empiricism, on the contrary cats up at the roots tho morality of intontions (in which,and not in actions only consiste the high worth that mon oan and onght to give themselves )... Empiricism, moreovor, boing on this account allied with all the inolinations which ( no matter what fashion thoy put on) degrado humanity wlien they sto raisod to the dignity of a sup- romo practical principle, is for that roason mach more dange roas. " Kant's Theory of Ethics, pp.163, and 236-238. See also Kant's Critique of Pure Reason, (trans. by MaxMullor ) 2 nd Ed. pp. 640-657. † Soo The Ethical Problem, by Dr. Carus, 2nd Ed. p. 111. "Our proposition is that the loading principlo in ethics must be derived from the philosophical viow.back of it. Tho world- conception a man has, can alone givo character to the principle in his ethics. Without any world-conception wo can have no ethics (i, e. Othics in the highost sense of the word). We may act morally liko dreamors or somnambulists, but our ethics would in that caso be a mere moral instinot without any rational insight into its raison d'etro.". ...
पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५२४
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