४ गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशाख । इसके बाद व्यासगीता का प्रारंभ हुआ है। स्कंदपुराणान्तर्गत सूतसंहिता के चौथे अर्थात् यज्ञवैभवखंड के उपरिभाग के प्रारंभ (१ से १२ अध्याय तक ) में ब्रह्म- गीता है और इसके बाद आठ अध्यायों में सूतगीता है। यह तो हुई एक ब्राह्म- गीता; दूसरी एक और भी ब्रह्मगीता है, जो योगवासिष्ठ के निवाण-प्रकरण के उत्त- रार्ध (सर्ग १७३ से १८ तक) में आ गई है। यमगीता तीन प्रकार की है। पहली, विष्णुपुराण के तीसरे अंश के सातवें अध्याय में दूसरी, अग्निपुराण के तीसरे खंड के ३८४ वै अध्याय में; और तीसरी, नृसिंहपुराण के आठवें अध्याय में है। यही हाल रामगीता का है। महाराष्ट्र में जो रामगीता प्रचलित है वह अध्यात्म- रामायण के उत्तरकांड के पांचवें सर्ग में है और यह अध्यात्मरामायण ब्रह्मांट- पुराण का एक भाग माना जाता है । परन्तु इसके सिवा एक दूसरी रामगीता 'गुरुज्ञानवासिष्ठ-तत्त्वसारायण ' नामक ग्रंथ में है जो मद्रास की और प्रसिद्ध है। यह ग्रंथ वेदान्त-विपय पर लिखा गया है। इसमें ज्ञान, उपासना और कर्म-संबंधी तीन कांड है। इसके उपासना-कांड के द्वितीय पाद के पहले अठारह अध्यायों में राम- गीता है और कर्मकांड के तृतीय पाद के पहले पाँच अध्यायों में सूर्यगीता है। कहते हैं कि शिवगीता पद्मपुराण के पातालखंड में है। इस पुराण की जो प्रति पूने के पानंदाश्रम में छपी है उसमें शिवगीता नहीं है । पंडित ज्यालाप्रसाद ने अपने 'अष्टादशपुराणदर्शन ' ग्रंथ में लिखा है कि शिवगीता गौड़ीय पशोत्तरपुराण में है । नारदपुराण में, अन्य पुराणों के साथ साथ, पद्मपुराण की भी जो विषयानु- क्रमणिका दी गई है उसमें शिक्गीता का उलेख पाया जाता है । श्रीमद्भागवत- पुराण के ग्यारहवें स्कंध के तेरहवें अध्याय में इंसगीता और तेईसवें अध्याय में भिक्षुनीता कही गई है । तीसरे स्कंध के कपिनोपाख्यान ( २३-३३ ) को कई लोग कपिलगीता' कहते हैं। परन्तु कपिलगीता' नामक एक छपी हुई स्वतंत्र पुस्तक हमारे देखने में भाई है, जिसमें हठयोग का प्रधानता से वर्णन किया गया है और लिखा है कि यह कपिलगीता पमपुराण से ली गई है। परन्तु यह गीता पद्मपुराण में है ही नहीं। इसमें एक स्थान (३.७) पर जैन, जंगम और सूफ़ी का भी उल्लेख किया गया है जिससे कहना पड़ता है कि यह गीता मुसलमानी राज्य के बाद की होगी। भागवतपुराण ही के समान देवीमागवत में मी, सातवें स्कंध के ३१ से १० अध्याय तक, एक गाता है जिसे देवी से कहीं जाने के कारण, देवीगीता कहते हैं। खुद भगवद्गीता ही का सार अमिपुराण के तीसरे खंड के ३८०वें अध्याय में, तथा गरुडपुराण के पूर्वखंड के २४२ वें अध्याय में, दिया हुआ है। इसी तरह कहा जाता है कि वसिष्ठजी ने जो उपदेश रामचंद्रजी को दिया था उसीको योगवासिष्ट कहते हैं। परन्तु इस ग्रंथ के अन्तिम (अर्थात् निर्वाण) प्रकरण में अर्जुनोपाख्यान ' भी शामिल है जिसमें उस भगवद्गीता का सारांश दिया गया है कि जिसे भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था। इस उपाख्यान में भगवद्गीता के अनेक लोक ज्यों के त्यों पाये जाते हैं (योग.
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