। सिद्धावता और व्यवहार। विषयस अन्य (३.५) में करता किमानी पुरुषों का किया जा सला सदेय इसलिगे अफरहता है कि ये सच राज्य पो जान रहा है और ज्ञानी पुग्प फा यह निगाय या व्यवहार ही लौरों को प्रगण है। पिरपूरस नाम और पीक सत्यशालंपत्ता मेस प्रकार के प्रामाणिक परम ज्ञानी पुरुष से. मगीन में कक्षा ईकि, यह "मानस. समाधिमाला लार परमार के ही समान सदा मानन्दमय रहता तमा उसको लोगों से सवा उपसे लोगों को जरामा भी कष्ट न बता". पाठकों के ध्यान में सीजावेगा विश भगवनीता ने पति स्तिमज्ञ, निगुगणातीन, सधया परसमा गा अलभूत पुरण या वर्गान ने इन वान की गिरानी समताई ।" यस्मोहिनते लोको लोमाजहितं च यः " (जी. १२.१५)- जिलले लोग नहीं होते, प्यार जो लोगों से नहीं होता, ऐसे ही जो इप-सेना भरविपादसुग-युग आदि पन्धनों में मुगाई, सक्षा सपने बार में ही सन्तुष्ट है (सात्मन्यात्मना नुधः गी. २.५४) त्रिगुणों से जिसका अन्तः- फरगा चल नहीं होना (गुगौयों न बिगायो १४. २३). शुनि या निन्दा, पार मान या अपमान जिसे एमा सेतमा प्राणिमात्र यो सात प्रामा की एकता को पररा फर(१८. ५५) साम्युति में भालाफाड़ कर, धैर्य और उत्साह से सपना फाय फर्म करनेवाला पयमा सम-लोट-मश्म-फांचन (१५.२५), ल्यादि प्रकार से भगवनीता में भी स्थितप्रज्ञ के पागा तीन-चार पार विस्तारपपंया पतलाये गये है। इसी अवस्या को सिद्धावन्या या माली स्थिति कहते हैं। और गोगवासिष्ठ प्रादि के प्रगोता इसी गिति को जीवन्मुजावस्या कहते है। इस स्थिति का प्राप्त हो जाना अत्यन्त दुर्घट, राप जर्गन सापवंता कान्ट का कप कि, जी पगिमतों ने इस गिति का जो यगान किया है पद मिली पाल पारतविक पुमा का पान नही है, चतिक गुग नीति के नवा को, लोगों मन में भर देने के लिये, समम्न नीति की गड 'शुद्ध पासना ' को ही मनुना का चोला देकर उन्होंने परले सिरे के ज्ञानी और नीतिमान् पुरुष का चित्र अपनी कल्पना से संगार किया है। जेकिन हमारे शासकारों का मत है कि यह लिति रयाली नहीं, बिलकुल सघी और नन का निप्रद तथा प्रयत्न करने से इसी लोक में प्राप्त हो जाती है। इस यात का प्रत्यक्ष अनुमप भी हमारे देशवालों को प्राप्त है । तथापि यह यात साधारण नहीं है, गीता (७.३) में ही स्पष्ट कहा है कि हमारा मनुष्यों में कोई एक-साध मनुष्य इसकी प्राप्ति के लिये प्रयत्न करता है, और इन हज़ारों प्रयत्न करनेवालों में किसी Ipionrus held the virtuous stato to bo " a tranquil, rindis. turld, innocnons, noncompatitiro frnition, which approached most nearly to tho porſoot lippiness of the Gods, "who" neither suffered roxation in themsolvo4, nor cansed yoxation to others. " Spencor's Data of Ilhins p.278; Bain's Mental and Moral Science स. 1875, p.530 इसी को Ideal Wiso Man पड़ी है। गी.र. ४७
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