पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/२९८

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अध्यात्मा पड़सा है, कि फर्म के नियम कौन से हैं और उनका परिणाम क्या होता है, अपया धुद्धि की शुद्धता होने पर भी प्यवहार प्रांत कर्म क्या करना चाहिये ? भगवद्गीता में ऐसा विचार किया भी गया है। संन्यास-मार्गवाले लोगों को इन प्रश्नों का कुछ भी महाप नहीं जान पड़ता; मतपय ज्योंही भगवद्गीता के चेदान्त या भक्ति का निरूपण समात हुशा, त्योंहीप्रायः ये लोग अपनी पोधी समेटने लग जाते हैं । परन्तु ऐसा फरना, हमारे मत से, गीता के मुख्य उद्देश की और ही दुर्लक्ष्य करना है। अतएव प्रय पागे मास कम से इस बात का विचार किया जायगा, कि भगवद्गीता में उपर्युक्त प्रमों के क्या उसर दिये गये हैं।