पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/२१८

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विश्व की रचना और संहार। १७६ सांख्यों के निश्चित किये हुए मत का सारांश यह है- साविक मईकार से सेंन्द्रिय-सृष्टि की मूलभूत ग्यारह इन्द्रिय शक्तियाँ (गुण) उत्पन्न होती हैं। और तामस अहंकार से निरिन्द्रिय-सृष्टि के मूलभूत पाँच तन्मात्रद्न्य निर्मित होते हैं। इसके बाद पञ्चतन्मानद्रव्यों से क्रमशः स्थूल पञ्चमहाभूत (जिन्हें 'विशेष' भी कहते हैं) और स्थूल निरिन्द्रिय पदार्थ बनने लगते हैं, तथा, यथासम्भव इन पदार्थों का संयोग ग्यारह इन्द्रियों के साथ हो जाने पर, सेन्द्रिय सृष्टि बन जाती है। सांख्य-मतानुसार प्रकृति से प्रादुर्भूत होनेवाले तत्वों का क्रम, जिसका वर्णन अब तक किया गया है, निन्न लिखित वंशवृक्ष से अधिक स्पष्ट हो जामगाः- ब्रह्मांड का वंशवृक्ष । पुरुष->(दोनों स्वयंभू और अनादि)< प्रकृति (अव्यक्त और सूक्ष्म) (निर्गुण; पर्यायशब्द :-इ, द्रष्टा इ.)। (सस्व-रज-तमोगुणी; पर्यायशब्द :- प्रधान, अव्यक्त, माया, प्रसव-धर्मिणी आदि) 1 महान् अथवा बुद्धि ( व्यक्त और सूक्ष्म (पर्यायशब्द :- आसुरः, मति, ज्ञान, ख्याति इ. अहंकार (व्यफ और सूक्ष्म ) (पर्यायशब्द :- अभिमान, तैजस मादि) अठारह तत्वों का लिंगशरीर (सूक्ष्म) (सास्तिकसृष्टि अर्थात् व्यक्त और सूक्ष्म इन्द्रियाँ) (तामस अर्थात् निरिदिय-सृष्टि) पाँच बुद्धीन्द्रियाँ पाँच कर्मेन्द्रियाँ. मन पञ्चतन्मात्राएँ. (सूक्ष्म) 1 विशेष या पञ्चमहाभूत (स्थूल) स्थूल पन्चमहाभूत और पुरुष को मिला कर कुल तत्वों की संख्या पचीस है। इनमें से महान् अथवा बुद्धि के बाद के तेईस गुण मूलप्रकृति के विकार हैं । किन्तु उनमें भी यह भेद है कि, सूक्ष्म तन्मात्राएँ और पाँच स्थूल महाभूत द्रव्यात्मक विकार हैं और बुद्धि अईकार तथा इन्द्रियाँ केवल शक्ति या गुण हैं। ये तेईस तत्व व्यक्त हैं और मूलप्रकृति अध्यक्त है । सांख्यों ने इन तेईस तत्वों में से आकाश 'तत्व ही में दिक् और काल को भी सम्मिलित कर दिया है। वे 'प्राण' को भिन्न तस्व नहीं मानते; किन्तु जब सब इन्द्रियों के व्यापार आरम्भ होने लगते हैं तब उसी को वे प्राण कहते हैं (सां. का. २८)। परन्तु वेदान्तियों को यह मत मान्य नहीं है, उन्हों ने प्राण को स्वतन्त्र तत्व माना है (वैसू. २. ४.६)। यह पहले