पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/१८७

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१४८ गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र। 'जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है। यही, सब चराचर सृष्टि में, अन्तिम सत्य है। पश्चिमी देशों में भी इन बातों की चर्चा की गई है और कान्ट जैसे कुछ पश्चिमी तत्त्वज्ञों के सिद्धान्त हमारे वेदान्तशास्त्र के सिद्धान्तों से बहुत कुछ मिलते जुलते भी हैं। जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं; और जब हम यह भी देखते हैं कि वर्तमान समय की नाई प्राचीन काल में प्राधिभौतिक शास्त्रों की उन्नति नहीं हुई थी; तव, ऐसी अवस्था में जिन लोगों ने वेदान्त के अपूर्व सिद्धान्तों को ढूंढ़ निकाला, उनके अलौकिक बुद्धिवैभव के बारे में आश्चर्य हुए विना नहीं रहता। और, न केवल आश्चर्य ही होना चाहिये, किन्तु उसके बारे में हमें उचित अमि- मान भी होना चाहिये। Nature ait Spiritu:ul Principle in dran 27 CTET ATT Baar PRAT गया है और फिर उनकी एकता दिखाई गई है । क्षेत्र क्षेसश-विचार में Psychology आदि मानसशास्त्रों का, और क्षर-अक्षर-विचार में Physics, Metaphysics आदि शास्त्रों का, समावेश होता है। इस बात को पश्चिमी पण्डित मी मानते हैं कि उक्त सब शास्त्रों का विचार कर लेने पर ही आत्मस्वरूप का निर्णय करना पड़ता है।