प्रस्तावना नहीं है-वह हिन्दुओं के लिये एकदम नई वस्तु नहीं है कि जिसे उन्होंने कभी देखा-सुना न हो । एसे बहुतरे लोग हैं, जो नित्य नियम से भगवद्गीता का पाठ किया करते हैं,और ऐसे पुरुष भी थोड़े नहीं हैं कि जिन्होंने इसका शास्त्रीयदृष्ट्या अध्ययन किया है अथवा करेंगे। ऐसे अधिकारी पुरुषों से हमारी एक प्रार्थना है कि जब उनके हाथ में यह ग्रन्थ पहुंचे और यदि उन्हें इस प्रकार के कुछ दोप मिल जायँ, तो वे फा कर हमें उनको सूचना दे दें। ऐसा होने से हम उनका विचार करेंगे, और यदि द्वितयि संस्करण के प्रकाशित.करने का अवसर आया तो उसमें यथायोग्य संशोधन कर दिया जायेगा । सम्भव है, कुछ लोग समझें कि, हमारा कोई विशेष सम्प्रदाय है और उसी सम्प्रदाय की सिद्धि के लिये हम गीता का, एक प्रकार का, विशेष अर्य कर रहे हैं । इसलिये यहाँ इतना कह देना आवश्यक है कि, यह गीतारहस्य अन्य किसी भी व्यक्तिविशेष अथवा सम्प्रदाय के उद्देश से लिखा नहीं गया है । हमारी बुद्धि के अनुसार गीता के मूल संस्कन श्लोक का जो सरल अर्थ होता है, वही हमने लिखा है। ऐसा सरल अर्थ कर देने से और आज कल संस्कृत का बहुत कुछ प्रचार हो जाने के कारण, बहुतेरे लोग समझ सकेंगे कि अर्थ सरल है या नहीं यदि इसमें कुछ सम्प्रदाय की गन्ध आ जावे, तो वह गीता का है, हमारा नहीं । अर्जुन ने भगवान् से कहा था कि “ मुझे दो-चार मार्ग वतला कर उलझन में न डालिये, निश्चयपूर्वक ऐसा एक ही मार्ग चतलाइये कि जो श्रेयस्कर हो" (गी. ३. २,५.१); इससे प्रकट ही है कि गीता में किसी न किसी एक ही विशेप मत का प्रतिपादन होना चाहिये । मूल गीता का ही अर्थ करके, निराग्रह बुद्धि से हमें देखना है कि वह एक ही विशेष मत कौन सा है; हमें पहले ही से कोई मत स्थिर करके गीता के अर्थ की इसलिये खींचातानी नहीं करनी है, कि इस पहले से ही निश्चित किये हुए मत से गीता का मेल नहीं मिलता । सारांश, गीता के वास्तविक रहस्य का,-फिर चाहे वह रहस्य किसी भी सम्प्रदाय का अथवा पन्थ का हो- गीता-भकों में प्रसार करके, भगवान् के ही कथनानुसार यह ज्ञानयज्ञ करने के लिये इम प्रवृत्त हुए हैं । हमें आशा है कि इस ज्ञानयज्ञ को अभ्यंगता की सिद्धि के लिये, ऊपर जो ज्ञानभिक्षा माँगी गई है, उसे हमारे देशयन्धु और धर्मवन्धु वडे आनंद से देंगे। प्राचीन टीकाकारों ने गीता का जो तात्पर्य निकाला है उसमें, और हमारे मतानुसार गीता का जो रहस्य है उसमें, मेद क्यों पडता है ? इस भेद के कारण गांतारहस्य में विस्तारपूर्वक बतलाये गये हैं । परन्तु गीता के तात्पर्य सम्बन्ध में यद्यपि इस प्रकार मतभेद हुआ करे तो भी गीता पर जो अनेक भाष्य और टीकाएँ ख.
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