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दयानाथ ने झेंपते हुए कहा-तो इतना बिगड़ते क्यों हो, मैंने तो कोई ऐसी बात नहीं कही?

रमा०——पक्का जालिया बना दिया, और क्या कहते ? आपके दिल में ऐसा शुबहा क्यों आया ? आपने मुझमें कौन-सी बात देखी जिससे आपको यह खयाल पैदा हुआ? मैं जरा साफ़-सुथरे कपड़े पहनता हूँ, जरा नयी प्रथा के अनुसार चलता है, इसके सिवा आपने मुझमें कौन-सी बुराई देखी ? मैं जो कुछ खर्च करता हूँ, ईमानदारी से कमाकर खर्च करता हूँ। जिस दिन धोखे और फरेब की नौरत आयेगी जहर खाकर प्रारण दे दूंगा। हाँ, यह बात है कि किसी को खर्च करने की तमीज होती है, किसी को नहीं होती। यह अपनी सुबुद्धि है। अगर इसे आप धोखेबाजी समझे, तो आपको अख्तियार है। जब आपकी तरफ से मेरे विषय में ऐसे संशय होने लगे, तो मेरे लिए यही अच्छा है कि मुँह में कालिख लगाकर कहीं निकल जाऊँ। रमेश बाबू यहाँ मौजूद हैं। आप इनसे मेरे विषय में जो कुछ चाहें, पूछ सकते है। यह मेरे खातिर झूठ न बोलेंगे।

सत्य के रंग में रंगी हुई बातों ने दयानाथ को आश्वस्त कर दिया। बोले——जिस दिन मुझे मालूम हो जायेगा कि तुमने यह ढंग अख्तियार किया है तुम्हारे पहले मैं मुंह में कालिख लगाकर निकल जाऊँगा। तुम्हारा बढ़ता हुमा खर्च देखकर मेरे मन में सन्देह हुआ था, मैं इसे छिपाता नहीं है लेकिन जब तुम कह रहे हो, तुम्हारी नीयत साफ़ है, तो मैं सन्तुष्ट हूँ। मैं केवल इतना ही चाहता हूँ, मेरा लड़का चाहे गरीब रहे पर नीयत न बिगड़े। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह तुम्हें सत्पथ पर रखे।

रमेश ने मुसकराकर कहा——अच्छा, यह किस्सा तो हो चुका; अब यह बत्ताओ उसने तुम्हें रुपए किस लिए दिये? मैं गिन रहा था, छः नोट थे, शायद सौ-सौ के थे।

रमा०——ठग लाया हूँ।

रमेश——मुझसे शरारत करोगे, तो मार बैलूंगा ! अगर जट हो लाये हो, तो भी मैं तुम्हारी पीठ झोकूगा, जीते रहो। खूब जटो; लेकिन श्रावस पर पाँच न आने पाये। किसी को कानोंकान खबर न हो। ईश्वर से तो मैं डरता नहीं। वह जो कुछ पूछेगा, उसका जवाब, मैं दे लूंगा; मगर

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