हुक्म दीजिए कि एक आदमी से ज्यादा मेरे सामने न आने पावे। रमेश बाबू ने मुस्कराकर मेज और कुसियाँ भिजवा दी। रमा शान से कुर्सी पर बैठा। बूढ़े मुंशीजी उसकी उच्छृंखलता पर दिल में हंस रहे थे। समझ गये, अभी नया जोश है, नई सनक है। चार्ज दे दिया! चार्ज में था क्या, केवल आज की आमदनी का हिसाब समझा देना था। किस जिन्स पर किस हिसाब से चुंगी ली जाती है, इसकी छपी हुई तालिका मौजूद थी, रमा आध घंटे में अपना काम समझ गया। बूढ़े मुंशीजी ने यद्यपि खुद ही यह जगह छोड़ी थी; पर इस वक्त जाते हुए उन्हें दुःख हो रहा था। इसी जगह वह ३० साल से बराबर बैठते आये थे। इसी जगह की बदौलत उन्होंने धन और यश दोनों ही कमाया था। उसे छोड़ते हुए क्यों न दुःख होता? चार्ज देकर जब वह बिदा होने लगे तो रमा उनके साथ जीने के नीचे तक गया। खाँ साहब उसकी इस नम्रता से प्रसन्न हो गये। मुसकराकर बोले--हर एक बिल्टी पर एक पाना बंधा हुआ है, खुली हुई बात है! लोग शौक से देते हैं। आप अमीर आदमी है; मगर रस्म न बिगाड़िएगा। एक बार कोई रस्म टूट जाती है, तो उसका फिर बंधना मुश्किल हो जाता हैं। इस एक पाने में चपरासियों का हक है। जो बड़े बाबू पहले थे, वह पचीस रुपया महीना लेते थे, मगर यह कुछ नहीं लेते।
रमा ने अरुचि प्रकट करते हुए कहा--गंदा काम है, मैं सफाई से काम करना चाहता हूँ।
बूढ़े मियां ने हँसकर कहा--अभी गन्दा मालूम होता है, लेकिन फिर इसी में मजा आयेगा।
खाँ साहब को विदा करके रमा अपनी कुर्सी पर आ बैठा और एक चपरासी ले बोला--इन लोगों से कहो, बरामदे के नीचे जायें। एक-एक करके नम्बरवार आवें; एक कागज पर सबके नाम नम्बरवार लिख लिया करो।
एक बनिया जो दो घंटे से खड़ा था, खुश होकर बोला--हाँ सरकार यह बहुत अच्छा होगा।
रमा--जो पहले आवे, उसका काम पहले होना चाहिए। बाकी लोग अपना नम्बर आने तक बाहर रहें। यह नहीं कि सबसे पीछे, वाले शोर