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रमा व्यग्र होकर पानी में कूद पड़ा और जोर-जोर से पुकारने लगा---जोहरा जोहरा! मैं आता हूँ।

मगर जोहरा में अब लहरों से लड़ने की शक्ति न थी। वह वेग से लाश के साथ ही धारा में बही जा रही थी। उसके हाथ-पांव हिलना बन्द हो गये थे।

एकाएक ऐसा रेला आया कि दोनों ही उसमें समा गयीं। एक मिनट के बाद जोहरा के काले बाल नजर आये। केवल एक क्षण तक! यही अन्तिम झलक थी। फिर वह नजर न आयी।

रमा कोई सौ गज तक जोरों के साथ हाथ-पाँव मारता हुआ गया लेकिन इतनी ही दूर में लहरों के वेग के कारण उसका दम फूल गया। अब आगे जाय कहाँ? जोहरा का तो कहीं पता भी न था। वही आखिरी झलक आँखों के सामने थी।

किनारे पर जालपा खड़ी हाय-हाय कर रही थी। यहांँ तक कि वह भी पानी में कूद पड़ी। रमा अब आगे न बढ़ सका। एक शक्ति आगे खींचती थी, एक पीछे। आगे की शक्ति में अनुराग था, निराशा थी, बलिदान था पीछे की शक्ति में कर्तव्य था, स्नेह था, बन्धन था! बन्धन ने रोक लिया। वह लौट पड़ा।

कई मिनट तक जालपा और रमा घुटनों तक पानी में खड़े उसी तरफ़ ताकते रहे। रमा की जबान आत्म-धिक्कार ने बन्द कर रखी थी, जालपा की शोक और लज्जा ने।

आखिर रमा ने कहा--पानी में क्यों खड़ी हो? सर्दी हो जायगी।

जालपा पानी से निकलकर तट पर खड़ी हो गयी, पर मुँह से कुछ न बोली--मृत्यु के इस आघात ने उसे पराभूत कर दिया था। जीवन कितना अस्थिर है, यह घटना आज दूसरी बार उसकी आँखों के सामने चरितार्थ हुई। रतन के मरने की पहले से आशंका थी। मालूम था कि वह थोड़े दिनों की मेहमान है; मगर जोहरा की मौत तो बज्रपात के समान थी! अभी आध घड़ी पहले तीनों आदमी प्रसन्नचित्त, जलक्रीड़ा देखने चले थे। किसे शंका थी, मृत्यु की ऐसी भीषण क्रीड़ा उनको देखनी पड़ेगी?

इन चार सालों में जोहरा ने अपनी सेवा, आत्मत्याग और सरल

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