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और वह जालपा का पूरा समाचार लाने के इरादे से चली जाती है। दिनेश के घर उसकी जालपा से भेंट होती है। जालपा का त्याग, सेवा और साधना देखकर हम वेश्या का हृदय इतना प्रभावित हो जाता है, कि वह अपने जीवन पर लज्जित हो जाती है और दोनों में बहनापा हो जाता है। वह एक सप्ताह के बाद आकर रमा से सारा वृत्तान्त कह सुनाती है। वह उसी वक्त वहाँ से चल पड़ता है और जालपा से दो-चार बातें करके जज के बँगले पर चला जाता है। उसके बाद जो कुछ हुआ, वह हमारे सामने है।

  मैं यह नहीं कहता, कि उसने झूठी गवाही नहीं दी; लेकिन उस परिस्थिति और उन प्रलोभनों पर ध्यान दीजिए, तो इस अपराध की गहनता बहुत कुछ घट जाती है। उस झूठी गवाही का परिणाम अगर यह होता, कि किसी निरपराध को सजा मिल जाती तो दूसरी बात थी। इस अवसर पर तो पन्द्रह युवकों की जान बच गई। क्या अब भी वह झूठी गवाहों का अपराधी है? उसने खुद ही तो अपनी झूठी गवाही का एकबाल किया है। क्या इसका उसको दण्ड मिलना चाहिए ? उसकी सरलता और सज्जनता ने एक वेश्या तक को मुग्ध कर दिया और वह उसे बहकाने और कहलाने के बदले उसके मार्ग का दीपक बन गयी। जालपा देवी की कर्तव्यपरायणता क्या दण्ड के योग्य है ? जालपा ही इस ड्रामा की नायिका है। उसी के सदनुराग, उसके सरल प्रेम, उसकी धर्मपरायणता, उसकी पतिभक्ति, उसके स्वार्थ त्याग, उसकी सेवा-निष्ठा, किस-किस गुण की प्रशंसा की जाय ! आज वह रंग-मंच पर न आती, तो पन्द्रह परिवारों के चिराग गुल हो जाते। उसने पन्द्रह परिवारों को अभय-दान दिया है। उसे मालूम था, कि पुलिस का साथ देने से सांसारिक भविष्य कितना उज्ज्वल हो जायेगा. वह जीवन की कितनी ही चिन्ताओं से मुक्त हो जायगी। सम्भव है, उसके पास भी मोटरकार हो जायेगी, नौकर-चाकर हो जायेंगे, अच्छा-सा घर हो जायेगा, बहुमूल्य आभूषण होंगे। क्या एक युवती रमणी के हृदय में इन सुखों का कुछ भी मूल्य नहीं है ? लेकिन वह यातना सहने के लिए तैयार हो जाती है। क्या यही उसके धर्मानुराग का उपहार होगा कि वह पतिवंचित होकर जीवन-पथ पर भटकती फिरे ? एक साधारण स्त्री में जिसने उच्चकोटि की शिक्षा नहीं पाई, क्या इतनी निष्ठा, इतना त्याग, इतना

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