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भी हमदर्दी न करोगी? क्या मुझे भूखों मरते देख मेरे साथ उससे कुछ भी ज्यादा सलूक न करोगी, जो आदमी कुत्ते के साथ करता है? मुझे तो ऐसी आशा नहीं। जहाँ एक बार प्रेम ने वास किया हो वहाँ उदासीनता और विराग चाहे पैदा हो जाय, हिंसा का भाव नहीं पैदा हो सकता। तुम मेरे साथ जरा भी हमदर्दी न करोगी जोहरा ? तुम अगर चाहो तो जालपा का पूरा पता लगा सकती हो, वह कहाँ है, क्या करती है, मेरी तरफ़ से उसके दिल में क्या खयाल है, घर क्यों नहीं जाती, कब तक रहना चाहती है ? अगर तुम किसी तरह जालपा को प्रयाग जाने पर राजी कर सको जोहरा, तो मैं उम्र भर तुम्हारी गुलामी करूंगा। इस हालत में मैं उसे नहीं देख सकता। शायद आज ही रात को मैं यहाँ से भाग जाऊंँ। मुझ पर क्या गुजरेगी, इसका मुझे जरा भी भय नहीं ! मैं बहादुर नहीं हूँ, बहुत ही कमजोर आदमी हूँ। हमेशा खतरे के सामने मेरा हौसला पस्त हो जाता है। लेकिन मेरी बेगैरती भी यह चोट नहीं सह सकती।

जोहरा वेश्या थी, उसको अच्छे-बुरे सभी तरह के आदमियों से साबिका पड़ चुका था। उसकी आँखों में आदमियों की परख थी। उसको इस परदेशी युवक में और अन्य व्यक्तियों में एक बड़ा फ़र्क दिखायी देता था। पहले वह यहाँ भी पैसे की गुलाम बनकर आयी थी, लेकिन दो-चार दिन के बाद ही उसका मन रमा की ओर आकर्षित होने लगा। प्रौढ़ा स्त्रियाँ अनुराग की अवहेलना नहीं कर सकतीं। रमा में और सब दोष हों, पर अनुराग था। इस जीवन में जोहरा को यह पहला आदमी ऐसा मिला था जिसने उसके सामने अपना हृदय खोलकर रख दिया, जिसने उससे कोई परदा न रखा। ऐसे अनुराग-रत्न को वह खोना न चाहती थी, उसकी बातें सुनकर उसे जरा भी ईर्ष्या न हुई; बल्कि उसके मन में एक स्वार्थमय सहानुभूति उत्पन्न हुई। इसी युवक को, जो प्रेम के विषय में इतना सरल था, वह प्रसन्न करके हमेशा के लिए अपना गुलाम बना सकती थी। उसे जालपा से कोई शंका न थी। जालपा कितनी ही रूपवती क्यों न हो, जोहरा अपने कला-कौशल से, अपने हाव-भाव से उसका रंग फीका कर सकती थी। इसके पहले उसने कई महान् सुन्दरी खन्नानियों को रुलाकर छोड़ दिया था। फिर जालपा किस गिनती में थी?

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