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जालपा बोली——क्या वह पुलिसवालों से यह नहीं कह सकता कि तुम्हारा गवाह बनाया हुआ है, झूठा है ?

'कह तो सकता है।'

'तो आज मैं उनसे मिलूँ ? मिल को लेता है ? '

'चलो, दरिवाफ्त करेंगे, लेकिन मामला जोखिम है।'

'क्या जोखिम है बताओ !'

भैंया पर कहीं झूठी गवाही का इलज़ाम लगाकर सजा कर दे तो? 'तो कुछ नहीं। जो जैसा करे, वैसा भोगे।'

देवीदीन ने जालपा को इस निर्ममता पर चकित होकर कहा——एक दूसरा खटका है। सबसे बड़ा डर उसी का है।

जालपा ने उद्धत भाव से पूछा——वह क्या?

देवी——पुलिसवाले बड़े कायर होते हैं। किसी का अपमान कर डालना तो इनको दिल्लगी है। जज साहब पुलिस कमिसनर को बुलाकर यह सब कहेंगे जरूर। कमिसनर सोचेंगे कि यह औरत सारा खेल बिगाड़ रही है। इसी को गिरफ्तार कर लो। जज अँगरेज होता तो निडर होकर पुलिस को तंबीह करता। हमारे भाई तो ऐसे मुकदमों में यूँ करते डरते हैं, कि कहीं हमारे ही ऊपर न बगावत का इलजाम आ जाय। यही बात है। जज साहब पुलिस कमिसनर से जरूर कह सुनावेंगे। फिर यह तो न होगा कि मुकदमा उठा लिया जाय, यही होगा कि कलई न खुलने पाये। कौन जाने तुम्ही को गिरफ्तार कर लें ? कभी-कभी जब गवाह बदलने लगता है या कलई खोलने पर उतारू हो जाता है, पुलिसवाले उसके घरवालों को दबाते हैं। इनकी माया अपरम्पार है।

जालपा सहम उठी। अपनी गिरफ़्तारी का उसे भय न था, लेकिन कहीं पुलिसवाले रमा पर अत्याचार न करें। इस भय ने उसे कातर कर दिया। उसे इस समय ऐसी थकान मालूम हुई, मानों सैकड़ों कोस की मंजिल मार- कर आयी हो। उसका उत्साह बर्फ के समान पिघल गया।

कुछ दूर और आगे चलने के बाद उसने देवीदीन से पूछा——अब तो उनसे मुलाकात न हो सकेगी?

देवीदीन ने पूछा——भैया से ?

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