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साथ रहें, और जो सिर पर पड़े, उसे खुशी से झेलें। मैं यह कभी पन्सद न करती, कि वह दूसरों को दगा देकर मुखबिर बन जायें। लेकिन यह मामला तो बिल्कुल झूठा है। मैं यह किसी तरह नहीं बर्दाश्त कर सकती कि वह अपने स्वार्थ के लिए झूठी गवाही दें। अगर उन्होंने खुद अपना बयान न बदला, तो मैं अदालत में जाकर सारा कच्चा चिट्ठा खोल दूंगी, चाहे नतीजा कुछ भी हो। वह हमेशा के लिए मुझे त्याग दें, मेरी सूरत न देखें, यह मुझे मंजूर है, पर यह नहीं हो सकता कि वह इतना बड़ा कलंक माथे पर लगायें। मैंने अपने पत्र में सब लिख दिया है।

देवीदीन ने उसे आदर की दृष्टि से देखकर कहा-तुम सब कर लोगी बहू, अब मुझे विश्वान हो गया। जब तुमने कलेजा इतना मजबूत कर लिया है,तो तुम सब कुछ कर सकती हो।

'तो यहाँ से नौ बजे चलें।'

'हाँ, मैं तैयार हूँ।'

३८

वह रामनाथ जो पुलिस के भय से बाहर न निकलता था. जो देवीदीन के घर में चोरों की तरह पड़ा जिन्दगी के दिन पूरे कर रहा था, आंज दो महीने से राजसी भोग-विलास में डूबा हुआ है ! रहने को सुन्दर सजा हुआ बँगला है, सेवा-टहल के लिए चौकीदारों का एक दल, सबारी के लिए मोटर, भोजन पकाने के लिए एक कश्मीरी बावर्ची। बड़े-बड़े अफसर उसका मुँह ताका करते है। उसके मुँह से बात निकली नहीं, कि पूरी हुई। इतने ही दिनों में उसके मिज़ाज में इतनी नफालत आ गयी है, मानो वह खानदानी रईस हो। विलास ने उसकी विवेक-बुद्धि को सम्मोहन-सा कर दिया है। उसे कभी इसका खयाल भी नहीं आता, कि मैं क्या कर रहा हूँ और मेरे हाथों कितने बेगुनाहों का खून हो रहा है ! उसे एकान्त-विचार का अवसर ही नहीं दिया जाता। रात को सैर होती है। मनोरंजन के नित्य नये सामान होते हैं। जिस दिन अभियुक्तों को मैजिस्ट्रेट ने सेशन सुपुर्द किया, सबसे ज्यादा खुशी उसी को हुई। उसे अपना सौभाग्य सुर्य उदय हुआ मालूम होता था।

पुलिस को मालूम था, कि सेशन जज के इजलाम में यह बहार न होगी। संयोग से जज हिन्दुस्तानी थे और निष्पक्षता के लिए बदनाम। पुलिस हो या

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