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सरकार खुद अपना दोस्त बनाये रखना चाहती है। अगर आपकी शहादत बढ़िया हुई और आप उस फरीक की जिरहों की जाल से निकल गये, तो फिर आप पारस हो जायेंगे।

दारोगा जी ने उसी वक्त मोटर मँगवायी और रमा को साथ लेकर डिप्टी साहब से मिलने चल दिये। इतनी बड़ी कारगुजारी दिखाने में विलम्ब क्यों करते? डिप्टी से एकान्त में खुब ज़ीट उड़ायी। इस आदमी का यों पता लगाया। उसकी सूरत देखते ही भांप गया कि मफ़रूर है। बस गिरफ्तार हो तो कर लिया। बात सोलहों आने सच निकली, निगाह कहीं चूक सकती है? हुजूर, मुजरिम की आँखें पहचानता हूँ। इलाहाबाद की म्युनिसिपैलिटी के रुपये ग़बन कर के भागा है। इस मामले में शहादत देने को तैयार है। आदमी पढ़ा-लिखा, सूरत का शरीफ़ और ज़हीन है।

डिप्टी ने सन्दिग्ध भाव से कहा--हाँ, आदमी तो होशियार मालूम होता है।

'मगर मुआफ़ी-नामा लिये बगैर इसे हमारा एतबार न होगा। कहीं इसे यह शुबहा हुआ, कि हम लोग इसके साथ कोई चाल चल रहे हैं, तो साफ़ निकल जायगा।'

डिप्टी--यह तो होगा ही। गवर्नमेंट से इसके बारे में बात-चीत करना होगा। आप टेलीफोन मिलाकर इलाहाबाद पुलिस से पूछिये कि इस आदमी पर कैसा मुकदमा है। यह सब तो गवर्नमेंट को बतलाना होगा। दारोगाजी ने टेलीफोन डाइरेक्टरो देखी, नम्बर मिलाया और बात-चीत शुरू हुई।

डिप्टी--क्या बोला?

दारोगा--कहता है, यहाँ इस नाम के किसी आदमी पर मुकदमा नहीं है।

डिप्टी--यह कैसा बात है भाई, कुछ समझ में नहीं आता। इसने नाम तो नहीं बदल दिया?

दारोगा--कहता है, म्युनिसिपैलिटी में किसी ने रुपये ग़बन नहीं किये। कोई मामला नहीं है।

डिप्टी--यह तो बड़ा ताज्जुब की बात है। आदमी बोलता है, हम रुपया लेकर भागा । म्युनिसिपैलिटी बोलता है, कोई रुपया ग़बन नहीं किया। यह आदमी पागल तो नहीं है?

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