यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

चाहते हैं। परिस्थिति की भयंकरता का अनुमान करके क्रोध की जगह उसके मन में भय का संचार हुआ। वह बड़ी तेजी से नीचे उतरी। उसे विश्वास था, वह नीचे बैठे हुए इन्तजार कर रहे होंगे। कमरे में प्रायी, तो उनका पता न था। साइकिल रखी हुई थी, तुरंत दरवाजे से झांका ! सड़क पर भी पता न था। कहाँ चले गये? लड़के दोनों स्कूल गये थे, किसको भेजे कि जाकर उन्हें बुला लाये। उसके हृदय में एक अज्ञात संशय अंकुरित हुआ।फौरन ऊपर गयी, गले का हार और हाथ का कंगन उतारकर रुमाल' में बाँधा, फिर नीचे उतरी; सड़क पर आकर एक तांगा किया, और कोचबान से बोली——चु़ंगी कचहरी चलो। वह पछता रही थी कि मैं इतनी देर बैठी क्यों रही। क्यों न गहने उतारकर तुरन्त दे दिये?

रास्ते में वह दोनों तरफ बड़े ध्यान से देखती जाती थी। क्या इतनी जल्द इतनी दूर निकल आयें? शायद देर हो जाने के कारण वह भी आज ताँगे ही पर गये है, नहीं तो अब तक जरूर मिल गये होते। ताँगेवाले से बोली—— क्यों जी, अभी तुमने किसी बाबू जी को ताँगे पर देखा?

ताँगेवाले ने कहा——हाँ माईजी, एक बाबू अभी तो इधर ही से गये हैं।

जालपा को कुछ ढाढ़स हुआ, रमा के पहुँचते-पहुँचते वह भी पहुँच जायेगी। कोचवान से बार-बार घोड़ा तेज करने को कहती। जब वह दफ्तर पहुँची तो ग्यारह बज गये थे, कचहरी में सैकड़ों आदमी इधर-उधर दौड़ रहे थे। किससे पूछे? न जाने वह कहाँ बैठते हैं।

सहगा एक चपरासी दिखलायी दिया। जालपा ने उसे बुलाकर कहा——सुनो जी, जरा बाबू रमानाथ को बुला लाओ।

चपरासी बोला——उन्हीं को बुलाने तो जा रहा हूँ। बड़े बाबू ने भेजा‌ ‌‌‌‌‌‌है। आप क्या उनके घर ही से आयी है?

जालपा——हाँ, मैं तो घर ही से आ रही है। अभी दस मिनट हुए बह घर से चले हैं।

चपरासी——यहाँ तो नहीं आये।

जालपा बड़े असमन्जस में पड़ी। वह वहाँ भी नहीं आये, रास्ते में भी नहीं मिले, तो फिर गये कहाँ? उसका दिल बाँसों उछलने लगा। आँखें भर-भर आने लगी। चट्टा बाबू के सिधा वह और किसी को न जानती

ग़बन
१३९