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बयान नहीं कर सकता। तब से अब तक यानी इसी फ़िक्र में दौड़ रहा हूँ। कोई बन्दोबस्त न हो सका।

रमेश——अपने पिता से तो तुमने कहा ही न होगा? रमा०——उनका स्वभाव तो आप जानते हैं। रुपये तो न देते, उलटी डाँट सुनाते।

रमेश-तो फिर क्या फ्रिक करोगे? रमा०-आज शाम तक कोई-न-कोई फिक्र करूँगा ही।

रमेश ने कठोर भाव धारण कर कहा-तो फिर करो न ! इतनी लापरवाही तुमसे कैसे हुई, यह मेरी समझ में नहीं आता। मेरी जेब से तो आज तक एक पैसा न गिरा। आँखें बन्द करके रास्ते में चलते हो या नशे में थे ! मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं आता। सच-सच बतला दो, कहीं अनापशनाप तो नहीं खर्च कर डाले? उस दिन तुमने मुझसे क्यों रुपये मांगे थे?

रमा का चेहरा पीला पड़ गया। कहीं कलई न खुल जाये। बात बनाकर बोला——क्या सरकारी रुपये खर्च कर डालूंगा। उस दिन तो आपसे रुपये इसलिए मांगे थे, कि बाबूजी को एक जरूरत आ पड़ी थी। घर में रुपये न थे। आपका खत मैंने उन्हें सुना दिया था। बहुत हँसे, दूसरा इन्तजाम कर लिया। इन नोटों के गायब होने का तो मझे खुद ही आश्चर्य है।

रमेश——तुम्हें अपने पिता जी से मांगते संकोच होता हो तो मैं खत लिखकर मंगवा लूँ?

रमा ने कानों पर हाथ रखकर कहा—— नहीं बाबूजी, ईश्वर के लिए ऐसा न कीजिएगा। ऐसी ही इच्छा हो, तो मुझे गोली मार दीजिए।

रमेश ने एक क्षण तक कुछ सोचकर कहा——तुम्हें विश्वास है, शाम तक रुपये मिल जायेंगे?

रमा——हाँ, आशा तो है !

रमेश——तो इस थैली के रुपये जमा कर दो, मगर देखो भाई, साफ साफ कहे देता हूँ, अगर कल दस बजे रुपये न लाये तो मेरा दोष नहीं। कायदा तो यही कहता है कि मैं इसी वक्त तुम्हें पुलिस के हवाले करूँ मगर तुम अभी लड़के हो, इसलिये क्षमा करता हूँ! वरना तुम्हें मालूम है, मैं सरकारी काम में किसी प्रकार को मुखेवत नहीं करता। अगर तुम्हारी जगह

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