यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

आखिर आध घण्टे की बेगार के बाद उसका जी ऊब गया। घड़ी में साढ़े नौ बज रहे थे। मतलब की बात कैसे छेड़े। रतन तो झूले में इतनी मगन थी मानो उसे रुपयों की सुध ही नहीं है।

सहसा रतन ने झूले के पास जाकर कहा-बाबूजी, मैं बैठती हूँ, मुझे झुलाइए; मगर नीचे से नहीं, झूले पर खड़े होकर पेंग मारिए!

रमा बचपन ही से झूले पर बैठते डरता था। एक बार मित्रों ने जबरदस्ती झूले पर बैठा दिया तो उसे चक्कर आने लगा। पर इस अनुरोध ने उसे झूले पर आने के लिये मजबूर कर दिया। अपनी अयोग्यता कैसे प्रकट करे। रतन दो बच्चों को लेकर बैठ गयी, और यह गीत गाने लगी-

कदम की डरियाँ झूला पड़ गयो री,
राधा रानी झूलन आई।

रमा झूले पर खड़ा होकर पेंग मारने लगा; लेकिन उसके पाँव काँप रहे थे, और दिल बैठा जाता था। जब झूला ऊपर से गिरता था, तो उसे ऐसा जान पड़ता था मानो कोई तरल वस्तु उसके वक्ष में चुभती चली जा रही है-और रतन लड़कियों के साथ गा रही थी-

कदम की डरियाँ झूला पड़ गयो री,
राधा रानी झूलन आई।

एक क्षण के बाद रतन ने कहा-जरा और बढ़ाइए साहब, आपसे तो झूला बढ़ता ही नहीं।

रमा ने लज्जित होकर जोर लगाया; पर झूला न बढ़ा। रमा के सिर में चक्कर आने लगे।

रतन-आपको पेंग मारना नहीं आता; कभी झूला नहीं झूले?

रमा ने झिझकते हुए कहा-हाँ, इधर तो वर्षों से नहीं बैठा।

रतन-तो आप इन बच्चों को सँभालकर बैठिए, मैं आपको झुलाऊँगी। अगर उस डाल से न छू ले तो कहिएगा। रमा के प्राण सूख गये। बोला, आज तो बहुत देर हो गयी है, फिर कभी आऊँगा।

रतन-अजी अभी क्या देर हो गयी है, दस भी नहीं बजे। घबराइए नहीं, अभी बहुत रात पड़ी है। खूब झूलकर जाइएगा। कल जालपा को लाइएगा, हम दोनों झूलेंगी।

ग़बन
१०५