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रमा को इस समय इन बातों में कोई आनन्द न आया। वह तो इस समय दूसरी ही चिन्ता में मग्न था।

वकील साहब ने फिर कहा- जब तक हम स्त्री-पुरुषों को अबाध रूप से अपना-अपना मानसिक विकास न करने देंगे, हम अवनति की ओर खिसकते चले जायेंगे। बन्धनो से समाज का पैर न बाँधिए, उसके गले में कैद की जन्जीर न डालिए। विधवा विवाह का प्रचार कीजिए, खूब जोरों से कीजिए; लेकिन यह बात मेरी समझ में नहीं आती कि जब कोई अधेड़ आदमी किसी युवती से व्याह कर लेता है, तो क्यों अखबारों में इतना कुहराम मच जाता है ? योरोप में ८० बरस के बूढ़े युवतियों से ब्याह करते है; सत्तर वर्ष की वृद्धाएं युवकों से व्याह करती है। कोई कुछ नहीं कहता। किसी को कानो-कान खबर भी नहीं होती। हम बूढ़ो को मरने के पहले ही मार डालना चाहते हैं। हालाँकि मनुष्य को कभी किसी सहगामिनी की ज़रूरत होती है तो वह बुढ़ापे में, जब उसे हरदम किसी अवलम्ब की इच्छा होती है, जब वह परमुखापेक्षी हो जाता है।

रमा का ध्यान झूले की ओर था। किसी तरह रतन से दो-दो बातें करने का अवसर मिले। इस समय उसकी सबसे बड़ी कामना यही थी। उसका वहाँ जाना शिष्टाचार के विरुद्ध था। आखिर उसने एक क्षण के बाद झूले की ओर देखकर कहा- ये इतने लड़के किधर से आ गये?

वकील- रतन बाई को बाल-समाज से बड़ा स्नेह है। न जाने कहाँ से इतने लड़के जमा हो जाते हैं। अगर आपको बच्चों से प्यार हो, तो जाइए।

रमा तो यह चाहता ही था, झट झूले के पास जा पहुँचा। रतन उसे देखकर मुस्करायी और बोली- इन शैतानों ने मेरी नाक में दम कर रखा है। झूले से इन सबों का पेट नहीं भरता। आइए; ज़रा आप भी बेगार कीजिए, मैं तो थक गयी। यह कहकर वह पक्के चबूतरे पर बैठ गयी। रमा झोके देने लगा। बच्चों ने नया आदमी देखा, तो सब-के-सब अपनी बारी के लिए उतावले होने लगे। रतन के हाथों दो बारियाँ आ चुकी थीं; पर यह कैसे हो सकता था कि कुछ लड़के तो तीसरी बार झूलें, और बाकी बैठे मुँह ताकें। दो उतरते तो चार झूले पर बैठ जाते। रमा को बच्चों से नाममात्र को भी प्रेम न था, पर इस वक्त फँस गया था, क्या करता?

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