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वकील- आपके बोर्ड में लड़कियों को अनिवार्य शिक्षा का प्रस्ताव कब पास होगा ? और कई बोडों ने तो पास कर दिया। जब तक स्त्रियों की शिक्षा का काफी प्रचार न होगा,हमारा कभी उद्धार न होगा। आप तो योरोप न गये होंगे ! ओह ? क्या आजादी है, क्या दौलत है, क्या जीवन है, क्या उत्साह है ! बस, मालूम होता है, यही स्वर्ग हैं ! और स्त्रियां भी सचमुच देवियाँ हैं ! इतनी हँसमुख, इतनी स्वच्छन्द ! यह सब स्त्री शिक्षा का प्रसाद है !

रमा ने समाचार-पत्रों में इन देशों का जो थोड़ा बहुत हाल पढ़ा था, उसके आधार पर बोला- वहाँ स्त्रियों का आचरण तो बहुत अच्छा नहीं है।

वकील- नान्सेंस! अपने-अपने देश की प्रथा है। आप एक युवती को किसी युवक के साथ एकान्त में विचरते देखकर दाँतों उँगली दवाते हैं;आपका अन्तःकरण इतना मलिन हो गया है कि स्त्री-पुरुष को एक जगह देखकर आप सन्देह किये बिना रह ही नहीं सकते; पर जहाँ लड़के और लड़कियाँ एक साथ शिक्षा पाते हैं, वहाँ यह जाति-भेद बहुत महत्व की वस्तु नहीं रह जाता। आपस में स्नेह और सहानुभूति की इतनी बातें पैदा हो जाती हैं कि कामुकता का अंश बहुत थोड़ा रह जाता है। यह समझ लीजिए कि जिस देश में स्त्रियों को जितनी अधिक स्वाधीनता है, वह देश उतना ही सभ्य है। स्त्रियों को कैद में, परदे में, या पुरुष से कोसों दूर रखने का तात्पर्य यही निकलता है कि आपके यहाँ जनता इतनी आचार-भ्रष्ट है कि स्त्रियों का अपमान करने में जरा भी संकोच नहीं करती। युवकों के लिए राजनीति, धर्म, ललित कला, साहित्य, दर्शन, इतिहास, विज्ञान और हजारों ही ऐसे विषय है, जिनके आधार पर वे युवतियों से गहरी दोस्ती पैदा कर सकते हैं। कामलिप्सा उन देशों के लिये आकर्षण का प्रधान विषय है, जहाँ लोगों की मनोवृत्तियाँ संकुचित रहती हैं। मैं साल भर योरोप और अमेरिका में रह चुका हूँ। कितनी ही सुन्दरियों के साथ मेरी दोस्ती थी। उनके साथ खेला हूँ। नाचा भी हूँ, पर कभी मुँह से ऐसा शब्द न निकलता था, जिसे सुनकर किसी युवती को लज्जा से सिर झुकाना पड़े। और फिर अच्छे और बुरे कहाँ नहीं हैं ?

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