an गदर के पन्न बादशाह की आज्ञा शायद ही मानी जाती थी, और शाहजादों को तो कोई पूछता तक न था कि तुम किस मर्ज की दवा हो ! सिपाही बिलकुल उच्छखल हो गए थे। न बिगुल को मानते थे, न अफसरों को सुनते थे, और न अपना कर्तव्य ही पालन करते थे। मौज की गिनती तो एक तरफ रही, कभी वर्दी भी नहीं पहनी। रईस शाहजादे और बेगमें अपने पुराने मनों को याद कर- करके पछताया करते थे। शाहजादे मौज की भाषा न समझते थे, और विना दुभाषिए की सहायता के बात ही नहीं कर सकते थे। शिल के गोलों से शहर के मकानात वहुधा विध्वंस हो गए थे। किले के दीवान खास में जो संगमर्मर का तख्त बिछा थाचूर-चूर हो गया। देहती का अँगरेजी स्कूल पहले ही दिन लूट लिया गया था, और अँगरेजी कितावें गली-कूचों में पड़ी हुई थीं। जो अँगरेजो बोलता था, सिपाही उसकी जब मरम्मत करते और कैद कर लिया करते थे। मेगजीन ११ मई को फटा था। इसके कारण आस-पास के बहुत-से मकानों को हानि पहुंची थी । लगभग ५०० आदमी उसमें मर गए थे। लोगों के मकानों में इतनी गोलियाँ
- गोले, जिनमें छोटी-छोटी बलियां लगी रहती हैं।