दूसरी कथा ठीक दोपहर में नगर से बाहर जाना पड़ता था, तो विपत्ति या जाती थी । तोप व बदूक की आवाज़ से दिल घड़क उठता था। उस पर मजा यह कि शासन और सेना-संचालन करना बिलकुल नहीं जानते थे। सिपाही इनकी मूर्खता पर हँसते थे। कभी-कभी तो इनके कुप्रबंधों के कारण बदज़बानी भी कर बैठते थे। फौज के लिये बादशाह मिठाई वगैरह लड़ाई के स्थला में भेजते थे, तो यार लोग रास्ते में ही लूट का माल समझकर उड़ा लेते थे । शाही फांज की वीरता और भी प्रशंसनीय थी। वास्तव में वे बड़े वीर थे । जव इनका जी चाहता कि युद्ध-स्थल से लौट भावें, तो पैरों पर जख्म के बहाने फटे-पुराने कपड़े वाँधकर लँगड़ाते और हाय-तोबा करते हुए वापस चले आते थे। ३० जून को रात के समय हिंडन के पुल पर विद्रोही विलकुल घबरा गए थे। बहुतेरे सिपाहियों ने अपनी तलवारें और बंदूक्त कुओं में डाल दी थी, और तितर-बितर होकर जंगलों और देहातों की तरफ भाग गए थे। क्योंकि इनको विश्वास या कि अगरेजी फौज इनका पीछा करती चली आ रही है। यदि उस दिन अँगरेजी फौज आ जाती, तो दिल्ली पर उसी दिन अधिकार हो जाता, इसलिये कि ये बिखरे हुए सिपाही दूसरे दिन नगर में पाए । बहुत-से इनमें से लापता हो गए। रास्ते में गूजरों ने इन्हें खूब लूटा । निदान, जब वे नगर में घुसे, तब इनके पास एक पैसा भी न था। .
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