पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/९२

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के वास्ते आए , दूसरी कथा हुमारी सहायता के लिये अवश्य भेज दी थी, कितु फिर उन्हें वापस मँगा लिया। ३८ नं. के डॉ० वो साहब को तोपखाने के एक सिपाही ने घायल कर डाला । इनके चेहरे पर गंभीर घाव थे। डॉक्टर महोदय गारद में इलाज थे, और जब वापस जा रहे थे, रास्ते में इन्हें घायल कर दिया गया। शाम को ५ बजे के लगभग एक हुक्म इस आशय का आया कि एक रेजिमेंट ७४ नं. की, जो मेजर एबट साहब की कमान में थी, पहाड़ी पर-जहाँ ३८ नं0 की रेजिमेंट पहले से तैयार खड़ी है-फौरन् आ जाय । सिपाही तैयार होकर कूच की प्रतीक्षा में खड़े थे कि हठात् ३८ नं० की रेजिमेंट के कुछ विद्रोही सिपाहियों ने अफसरों पर, जो वहाँ उपस्थित थे, गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। मैं दैवयोग से कश्मीरी दरवाजे के निकट था। मैंने देखा, एक अफसर घायल होकर गिरा। इतने में मेरी रेजिमेंट के एक सिपाही ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे द्वार के बाहर ढकेल दिया और कहा, यदि क्षण-भर भी ठहरे, तो इसी प्रकार मारे जाओगे । ज्यों ही मैं बाहर आया कि ७४ नं० की रेजिमेंट का एक सिपाही मेरे साथ हो गया । हमने सिपाही को साथ लेकर, रास्ता छोड़कर दूसरे रास्ते से पहाड़ी के बुर्ज की राह ली। वहाँ पहुँचकर ब्रगेडियर और दूसरे अँगरेजों से सब घटनाएँ कही गई। यहाँ छावनी में बहुत-सी अँगरेज-त्रियाँ और कतिपय पदाधिकारी एकत्रित .