दूसरी कथा जान सलामत बचा लाए । सार्जट मोयल साहब मेगजीन की रक्षा व सहायता को आ रहे थे कि विद्रोहियों ने मार्गही में इन्हें मार डाला। इस घटना के विषय में ५४ नं० रेजिमेंट के एक और अफसर की चिट्ठी भी नीचे दी जाती है। ११ मई, शनिश्चर के दिन दिल्ली की तमाम फौज को परेट करने और तीसरे रिसाले को कोर्ट मार्शल की तजवीज़ सुनने के लिये आज्ञा हुई । निदान, तमाम फ़ौज परेट पर इकट्ठी हुई, और परेट करने के बाद नियमानुसार अपनी-अपनी छावनी में चले गए । लगभग ६ बजे के कर्नेल रेली साहव वापस आए, ताकि अपनी रेजिमेंट और दो तोपें नदी के पुल पर ले जायें, और तीसरे रिसाले के विद्रोहियों को पुल पार करने से रोकें । निदान, गोरों की तमाम रेजिमेंट फौरन् हुक्म पाते ही वाहर आई, और १० मिनट में तैयार होकर प्रसन्नता-पूर्वक चल दी। जब मैं परेट पर पहुंचा, तो कर्नल साहब ने मुझे. हुक्म दिया कि अपनी नवीं व पहली कंपनी को लेकर और तोपखाने में जाकर इन दोनो तोपों के साथ रहो, जो रवाना होनेवाली हैं । चूँकि कप्तान डी. टेस्टर साहब का बंगला रास्ते में था, इसलिये मैं इनके पास गया, और इनसे तोपों की रवानगी की बाबत पूछा। साहब ने कहा, अभी तैयार होती हैं, तुम सदर बाजार में इनकी प्रतीक्षा करो। दोनो तो वहीं पहुँचेंगी। मैं इनके हुक्म के अनुसार सदर बाजार में ठहर गया । मुझे वहां पहुंचे 1 घंटा बीत गया, कितु तोपों का कोई.
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