दूसरी कथा लेफ्टिनेंट रेज़ साहब तथा दूसरे अँगरेजों ने मेगज़ीन के बचाने और रक्षा में बड़ी वीरता से काम लिया । किंतु कुछ लोग मेगजीन के अंदर दगाबाज़ थे। तथा बाहर विद्रोहियों का बड़ा जमघट हो गया था, इसलिये मेगजीन की रक्षा न हो सकी। उसमें आग लगा दी गई। इस मार-काट में कुछ अँगरेज़ भाग निकले थे । इनके सिवा एक लेफ्टिनेंट फारेस्ट साहब थे, इन्हीं की चिट्ठी से मेगज़ीन की रक्षा का हाल मालूम हुआ, जो नीचे लिखा जाता है- मेगजीन उड़ने की घटना ११ मई सुबह ७-८ बजे के बीच सर थी ओफल्स मेटकाफ साहब मेरे मकान पर आए, और कहा, मेगजीन में चलकर दो तोपें निकलवाकर पुल पर भेज दो, ताकि विद्रोही जमना को पार न कर सकें। मैं इनके साथ मेगजीन आया। यहाँ लेफ्टिनेंट ड्यली, लेफ्टिनेंट रेज़, मय कंडकेर एकली साहब, शावकली साहब और एकडिग सब कंडक्टर कटरो साहब और सार्जट एडवर्ड और टुअर्ट अपने हिंदोस्तानी अमले के साथ उपस्थित थे। सर थो ओफल्स अपनी गाड़ी से उतरे, और मैं और लेफ्टिनेंट ड्यूली साहब इनके साथ बुर्ज पर गए, जो जमना की तरफ़ था । यहाँ से पुल साफ नजर आता था। वहाँ पहुँच- कर देखा तो विद्रोही पुल पार कर रहे थे । यह देखकर सर थी और मेटकाफ साहब लेफ्टिनेंट ड्य ली साहब को साथ लेकर शहरपनाह का दरवाजा देखने गए कि
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