88 गदर के पत्र लगाते रहे। अंत में कहने लगे कि हम इसका बदला अब लेंगे। इस बीच में ५ अफसर, जिनका जिक्र ऊपर आ चुका है, मारे गए । कई जख्मी हुए, और एक सिपाही भी जख्मी हुआ। 6 जब विद्रोहियों ने देखा कि सरकारी फौज ने उनका मुकाबला नहीं किया, और अपने अफसरों के हुक्म के विरुद्ध लड़ने से इनकार कर दिया, तो वे कश्मीरी दर्वाजे की तरफ चले, जहाँ एक छोटा-सा मोरचा बना हुआ था, जिसमें गारद रहता था कि वहाँ जाकर कब्जा कर लें, परंतु सौभाग्य से वहाँ लेफ्टिनेंट विलसन के अधीन दो कंपनियाँ रेजिमेंट नं०५४ की और एक तोपखाना पहुँच गया, जिसकी वजह से बदमाश विद्रोही फिर नगर की तरफ वापस लौट आए। इस धोकेबाजो और दशा की खबर लगभग ११ बजे छावनी पहुँची, जिसके सुनते ही ७४ रेजिमेंट के हिंदोस्तानी सिपाहियों को जमा किया गया । उसमें सिर्फ १५० आदमी मौजूद थे, बाकी भिन्न-भिन्न मोर्चों पर पहले ही से बांटकर नियुक्त कर दिए गए थे। इनको मय दो तोपों के कुमुक के इरादे से मेजर एबट की अधीनता में नगर की तरफ रवाना किया गया । इन सिपाहियों की नमकहरामी को और एक हरकत देखिए-कितनी लज्जास्पद है-जब सिपाहियों के विद्रोह की खबर ज्ञात हुई, तब ३८ नंबर की रेजिमेंट का बार हिस्सा और ५४ नंबर की रेजिमेंट के सिपाही परेड
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