दूसरी कथा और न वे इसे इतना संगोन समझते थे, इसलिये वे सब फौज के आगे थे। इस वजह से विद्रोहियों ने सबसे पहले अफसरों पर वार किया, और कारवाइन गोलियाँ बरसानी शुरू की। कर्नल रेली के पहले तो गोली लगी, फिर विद्रोहियों ने तलवारों से उसे काट डाला । कर्नल के सिवा और भी दो-तीन अफसर गोलियों से घायल हुए। अफसरों ने बहुत कुछ सिपा- हियों से अनुनय-विनय की कि हमको बचाओ, किंतु फौज ने कुछ न सुनी। न वंदूक्ते भरी, न विद्रोहियों से मुकाबला करने की चेष्टा की, बल्कि इसके विरुद्ध कुछ धोकेबाज़ सिपाहियों ने उल्टे कर्नल रेली को संगीन के जख्म पहुँचाए । इस हंगासे में कप्तान डविलस, जो एक सप्ताह के लिये शहर पर तैनात किए गए थे, पहुँच गए। उन्होंने अपनी गारद को फ़ैर करने का हुक्म दिया। किंतु दुर्भाग्य देखिए कि इन बदजातों ने भी साफ इनकार कर दिया । यद्यपि साहब ने डरा-धमकाकर और अनुनय-विनय सभी तरह से कहा, पर इन पर कुछ असर न हुआ, वे बेहूदा इशारे करते और ताने मारते रहे । जब साहब ने बहुत खुशामद से कारण पूछा, तो विद्रोहियों के ढंग पर कहने लगे कि "साहब, हम उन लोगों के लिये कुछ नहीं कर सकते, जिन्होंने हमारे मजहब को खराब करने का इरादा कर लिया था, और चाहते थे कि हिंदू-मुसलमान दोनो के मजहब और उनकी जातें खराब हो जायें। निदान इसी तरह बकते-बकाते और असत्य अभियोग सरकार पर
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