दूसरी कथा जब दिल्ली में विद्रोहियों के घुस आने और अँगरेजों के कत्ल करने, इमारतों के जलाने-ढहाने और महसूलखाना मीरबहर को ढा देने की खबरें छावनी में पहुंची, तो जंगी अफसरों ने तमाम फौज को तैयार होने का हुक्म दिया। सबसे पहले ५४ नंबर की रेजिमेंट हिंदोस्तानी पैदलों की तैयार हुई, क्योंकि यह शहर के हाकिमों से निकटतर थी। इस रेजिमेंट में से ६ कंपनियाँ कर्नल रेली साहब की अधीनता में कश्मीरी दर्वाजे पर विद्रोहियों के रोकने को गईं, और दो कंपनियाँ मेजर टिप्रेस की अधीनता में तोपों के साथ जाने के लिये खड़ी रहीं। कर्नल रेली साहब चूँकि विद्रोह की वास्त- विकता से भिज्ञ न थे, और केवल साधारण विद्रोह समझे हुए थे, इसलिये अपनी फौज को खाली बंदूकों के साथ ले गए थे कि संगीनों के जोर से विद्रोहियों को दबा देंगे। किंतु जब यह फौज शहर के निकट पहुँची, तो दैवयोग से कुछ विद्रोही सवार दृष्टि पड़े, जिन्होंने आते ही अफसरों पर हमला कर दिया । और सिपाहियों से कहा, हम तुमसे कुछ नहीं कहते, और न बाधा डालना चाहते हैं । चूंकि बेचारे अफसरों को इस विद्रोह की वास्तविकता की ख़बर न थी,
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