आप बीती की पहली कथा में प्रवेश करके लड़ने से इनकार कर दिया और अपने अझ- सरों को तीसरे रिसाला के सवारों से कटवा दिया, और जरा भी विद्रोहियों का मुकाबला न किया । जब यहाँ तक नौबत पहुँची, और मामला यहाँ तक नाजुक हो गया, तो सिपाहियों को तैयार होने का हुक्म दिया गया। कारतूस बाँट दिए गए। वाजेवालों को भी बंदूकें और लड़ाई का सामान दिया गया। सत्रने हुक्म की तामील की, और बंदूकें भरकर लड़ाई के लिये तैयार हुए । यहाँ यह हो ही रहा था कि नंबर ५४ रेजिमेंट के कर्नेल रेली डोली में पाए। जख्मों से उनका शरीर लोहू-लुहान हो रहा था । मैंने इन्हें स्वयं यह कहते सुना कि मुझे खुद मेरे ही सिपाहियों ने संगीनें मारी हैं। इसके बाद फोजी डॉक्टर साहब की जवानी जो हाल मालूम हुआ, वह और ज्यादा शोक-जनक और कारुणिक था। उन्होंने सिपाहियों की बदमाशो और अफसरों के करल तथा रक्त-पात का हाल सुनाया, जिससे मालूम हो गया कि रेजिमेंट नं० ५४ विद्रोही हो गई । जब हालत यहाँ तक चिंता-जनक हो गई, तव अफसरों की परस्पर सम्मति से यह निश्चय हुआ कि जितनी तो और फोज बाक़ी है, वह सब पहाड़ी के ऊपर जाकर कयाम करे । अलबत्ता नं. ७४ की रेजिमेंट कश्मीरी दर्वाजे पर भेजी गई, ताकि वहां की गारद की मदद करे । वाक़ी तमाम फौज पहाड़ी के बुर्ज पर जाकर डट गई, और दोनो तो इस तरह लगाई कि उनकी जद उस
पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/६४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।