गदर के पत्र बारूद मेगजीन में था, उस पर अधिकार कर लिया। इस उपद्रव और मार-धाड़ के कारण नगर में रसद आनी बंद हो गई, और तमाम चीजें महंगी हो गई। आटा तीन सेर, गेहूँ आठ सेर, घी । सेर का बिकने लगा । इसी प्रकार सभी वस्तुएँ महँगी हो गई। देहली के आस-पास के जितने देहाती थे, सब उठ खड़े हुए, और लूट-मार प्रारंभ कर दी। बादशाह ने झगड़ा मिटाने के अभिप्राय से गूजरों के चार- पाँच गाँवों को जलवा दिया. कितु यह आग बुझी नहीं। सिकत्तर साहब की जो कोठी बिलासपुर में थी, वह भी लूट की भेंट चढ़ गई। विद्रोहियों, ने जब दिल्ली को अच्छी तरह लूट लिया, तब २०० सवार गुड़गाँव की तरफ गए, और वहाँ भी लूट-खसोट और आग लगाने का बाजार गर्म कर दिया। और, सरकारी खजाने को, जिसमें ७ लाख ८४ हजार रुपया था, लूटकर दिल्ली वापस आ गए । इस समय विद्रोहियों के पास देहली गुड़गाँव के खजानों का २१ लाख ८४ हजार रुपया नक़द मौजूद था, जो शाही किले और विद्रोही सिपाहियों की निगरानी में रक्खा गया। इस समय देहली में ३ रेजिमेंटें थीं। एक मेरठ की और दो खास दिल्ली की । नेजा-सवार भी मौजूद थे। बाङ्गी विद्रोही सिपाहियों की सेना अलीगढ़ और आगरे की ओर रवाना हो गई। शहर में सबसे बड़ा मालदार व्यापारी लछमनचंदं था,
पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/५९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।