अंगरेजों की विपत्ति लगा दी, जो एक रात और एक दिन बराबर जलती रही। दूसरे रोज शत्रु मेगजीन में से दो तो उठा लाए, और तमाम दिन इस पर गोले बरसाते रहे । लेकिन आश्रित अंगरेज तहखाने में चले गए थे, इसलिये सब सुरक्षित रहे, और किसी किस्म का उनको नुकसान नहीं पहुँचा । इसके बाद विद्रोहियों ने तमाम शहर को लूटना प्रारंभ कर दिया। यहां तक कि सिकत्तर साहब की कोठी को भी शहर के बदमाशों ने खूब लुटा । यद्यपि मेरठ के विद्रोहियों ने इसमें अब तक हाथ नहीं लगाया था। २३ ता० को विद्रोहियों ने फिर दुवारा उन अँगरेज़ों पर हमला किया, जो राजा किशनगढ़ की कोठी के अंदर तह- खाने में छिपे हुए थे। पर उस दिन अँगरेजों ने भी कोठी के अंदर से गोलियाँ चलाई, और कुछ शत्रुओं को मार डाला। पर जब उन गरीवों के पास गोली-बारूद नहीं रही, तब सिवा चार अँगरेजों के सब बाहर निकल आए, और लड़ते रहे। इसी बीच में युवराज साहब भी वहाँ पहुँच गए, और विद्रोहियों से कहा कि इन अँगरेजों को हमें दे दो, हम इन्हें हिरासत और निगहबानी में सुरक्षित रक्खेंगे। पर विद्रोहियों ने एक न मानी, और सबको मार डाला। मिस्टर जॉर्ज सिकत्तर साहब अपने बाल-बच्चों-सहित किले में आश्रित थे। गप्तचरों ने संदेश दिया कि वह वहाँ छिपे हुए हैं। विद्रोही उन्हें किले से कोतवाली पकड़ लाए, और यहाँ
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