गदर के पत्र की कोठी पर गए । इसको भी आग लगाकर जला डाला, और ५ अंगरेजों को जान से मार डाला | फिर वहाँ से कोतवाली गए, और बदमाशों से कह दिया कि शहर को खूब लूटो । कोत- वाल भयभीत होकर कोतवाली छोड़कर भाग गया, और कोई तदबीर दीन-दुखियों के बचाने की न की। कोतवाली से स्वर्गीय सिकत्तर साहव की कोठी पर गए, पर उसमें आग नहीं लगाई, लेकिन वहीं गिरजा और उसके आस-पास के मकानों में आग लगाकर जला दिया, तथा उनमें जो अँगरेज, मिसें और अबोध बच्चे थे, सबको कत्ल कर डाला। अनंतर उन्हीं विद्रोहियों में से पाँच सवार छावनी पहुँचे । इनके पहुँचते ही वहाँ जितने सिपाही थे, उन्होंने अपने ऑफिसरों के बँगलों में आग लगाना शुरू कर दिया । और, जो अँगरेज़ मिला, बड़ी निर्दयता से उसे मार डाला । बाक्री सवार मेगजीन की तरफ गए, किंतु निकट पहुँचे ही थे कि जितने सिपाही थे, वे सब तथा एक हजार नगर निवासी मेगजीन के फटने से उड़ गए। ईश्वर जाने मेगजीन में क्योंकर आग लग गई। अब यहाँ छावनी में जितने सिपाही थे, दो भागों में विभक्त हो गए। कुछ तो विद्रोहियों के साथ मिलकर शहर को लूटने में लग गए, और दो रेजिमेंट लालडिग्गी के निकट किले के सामने उहरी । इनमें से एक गारद राजा किशनगढ़ की कोठी पर गया, क्योंकि उसने अंगरेजों को आश्रय दिया था। उस कोठी में ३२ प्राणी पाश्रित थे। इस दल ने वहाँ पहुँचकर कोठी में भाग
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