देहली के गदर की कहानियाँ अँगरेज़ों की विपत्ति गदर होने के लगभग एक महीना पहले, पहली एप्रिल सन् १८५७ ईस्वी को एक विज्ञापन इस आशय का 'जामा मस्जिद', देहली में चिपकाया गया था कि ११ मई को देहली लूटी जायगी, और बड़ी खून-खराबी होगी । मगर हाकिमों ने इस तरफ कुछ ध्यान नहीं दिया, और मामूली अफवाह समझकर हँसी में टाल दिया गया । उत्तरी-पश्चिमी अखबारों ने भी इसको कोई महत्त्व न दिया । इसका प्रभाव यह पड़ा कि सर्वसाधारण जन शांत और निश्चित होकर बैठ रहे । यहाँ तक कि ११ मई का वह भयानक दिन आ गया, और मेरठ के विद्रोहियों की एक टुकड़ी ७ बजे सुबह के वक्त. नावों से जमुनाजी को पार करके शहर में घुसी । इन विद्रोहियों में कुछ नेजे-सवार और कुछ बीसवीं और ग्यारहवीं हिंदोस्तानी रेजिमेंट के पैदल सैनिक सम्मि- लित थे। सबसे पहले इन विद्रोहियों ने घाट के ठेकेदार को लूट लिया। इसके बाद पुल द्वारा शहर में घुस पड़े, और पुल ही पर एक फिरंगी को, जो रास्ते में इनको दृष्टि पड़ गया था, मार डाला। नदी पार करने के बाद मल्लाहों ने पुल ,
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