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ग़दर के पत्र


कि तुम चुपचाप एक कोने में खड़े रहो, मैं भीतर जाकर देखूँ कि कौन-कौन है। यह कार्य मेरे लिये सौभाग्य-सूचक था, क्योंकि पीछे मालूम हुआ कि धोबी का भाई हमारे क़त्ल से खुश हुआ कि अब उन कपड़े उसी के पास रहेंगे। अगर मैं भीतर चला जाता, तो वह हरगिज़ हमारे बचाने की कोशिश न करता। मैं एक कोने में बड़ी देर तक खड़ा रहा। उधर से आदमी गुज़रते थे। अगर उन्हें ज़रा भी जबर हो जाती कि यह फिरंगो खड़ा है, तो न जाने क्या-क्या अपमान सहने पड़ते। मैं तमाम उन्न शहर में रहा हूॅ। मुझे बहुधा लोग जानते थे, इसलिये भय था कि कोई पहचान न ले। और, मेरी ओढ़नी की बेतरतीबी से बोई साँप न जाय। इसी सोच- विचार में थोड़ी देर बैठा रहा। अब सुबह होने लगी। तब इस भय से कि अब पर्दा खुल जायगा, घबराया। अंत में घीशे निकला। उसके धागे-आगे एक बैल कपड़ों से लदा जा रहा था पर वह मेरी तरफ़ न आया बल्कि सामने एक दूसरी गली में चता गया। यह देखकर मुझे शोक हुआ कि देखो, यह भी मुझे छोड़ चला। जो भाग्य में होगा, वह होगा। परंतु जब उसकी सेवा और ईमानदारी का खयाल आया, तो दिल ने कहा कि यह इस कारण मेरी तरफ़ नहीं आया कि किसी को शक न हो। धोबी नज़र से ओझल हो गया। उस समय मैं उठा, और उसके पीछे हो लिया। वह आगे-आगे जाता था और मैं कुछ पीछे-पीछे।