किया होगा। यह भयंकर दृश्य देखकर मैंने अपनी आँखें बंद
कर ली, और मेरा शरीर थर-थर काँपने लगा। जब डरते-
डरते दुबारा मैंने आँखें खोली, तो उससे अधिक रोमांचकारी
दृश्य देखना पड़ा। क्लार्क साहब और उनकी मेम पास-
पास पड़े थे। और, यह कहना मेरे लिये शक्य नहीं कि यह
दृश्य कितना भयानक था। क्योंकि मैं पहले कह चुका हूँ कि
क्लार्क साहब की मेम हामिला थीं, और प्रसव निकट ही था।
मैं चीखने की आवाज़ सुनकर तीसरे कमरे में गया। वहाँ देखा, गरीब धोबी हाथ मल-मलकर रो रहा है। वह ग़ुसल- खाने के दर्वाज़े पर खड़ा था। मैं दौड़कर ग़ुसलखाने तक गया, पर अंदर न जा सका, क्योंकि वहाँ जो हाल था, वह दुश्मन को भी देखना नसीब न हो। मैं तो यह विचार भी मन में नहीं ला सकता कि क्लार्क साहब की तरह मैं अपनी पत्नी को देखूँ। मैं बदहवास होकर, दोनो हाथ घुटनों पर रखकर बैठ गया। मुझे उस समय रोना भी नहीं आया। ऐसा मालूम होता था कि दिल पर एक पहाड़ रक्खा हुआ है, जो आँखों तक आँसुओं को नहीं आने देता। मुझे मालूम नहीं कि मैं कितनी देर वहाँ बैठा रहा। आखिर धोबी ने आकर कहा -- इधर आदमी आते-जाते हैं, अब इधर रहना उचित नहीं। वह मुझे पकड़कर अपने घर ले गया। अब शाम हो गई थी, और अँधेरा फैल गया था। खयाल हुआ, शायद नौकर वापस आवें। मगर मुझे अब किसी पर विश्वास न रहा था।