ले जाऊँ, मगर वहाँ भी बहुत-से आदमी मौजूद थे। उन्होंने
मुझे मारा और कहा कि भाग जाओ, वरना मार डालेंगे।
मैं बाग़ में छिप गया। वहीं से मैंने पहले बड़ा शोर सुना, फिर
देखा कि वे लोग घर को लूट रहे हैं। दरवाज़े के शीशे भी
तोड़ डाले। फिर चले गए।
यह सुनकर थोड़ी देर तो मैं सन्नाटे में रहा। फिर धोबी से कहा कि चलो अंदर चलें। मकान में जाकर बाहर के कमरे में देखा कि प्रायः चीजें टूटी-फूटी पड़ी हैं। मेज़ें कुल्हाड़ियों से तोड़ी गई थीं, और सब चीज़ें फर्श पर बिखरी पड़ी थीं। मुरव्वे व अचार के ढेर लगे थे। तमाम बिस्कुट फैले पड़े थे। बरांडी आदि शराब की बोतलें टूटी पड़ी थीं, और उनकी बदबू फैल गई थी।
यह दृश्य मेरी आँखों में अब भी झूल रहा है। ऐसे अवसरों
पर प्रत्येक पुरुष को जो निकृष्ट संदेह लगा रहता है, वही भया-
नक अंदेशा और खतरा मुझको भी था। इसी अंदेशे से मैं देर
तक उस कमरे में रहा, और इधर-उधर देखता रहा। अंत में
दिल को कड़ा करके दूसरे कमरे में गया। वहाँ जो कुछ दिखाई
पड़ा, उसे देखने के लिये पत्थर का हृदय चाहिए। वहाँ पहुँचते
ही मेरा हृदय भय और घृणा से भर गया। सामने जो दृष्टि पड़ी,
तो क्लार्क साहब का बेटा दीवार पर एक मेख से लटका हुआ
था। उसका सिर नीचे था और खून का फ़ौवारा जारी था।
अफ़सोस! यह दर्दनाक और भयानक क़त्ल उन्होंने मा के सामने