शिक्षा-प्रद दृश्य निदान, मैं अपने बाग में आया, तो सन्नाटा-सा छाया हुआ था । मकान के निकट पहुँचा, तो कुर्सी, गिलास, रकाबी और किताब' टूटी फूटी और अस्त-व्यस्त पड़ी थीं । कपड़ों के गट्ठर जल रहे थे। पहले जिधर नौकर रहते थे, उधर गए, मगर वहाँ कोई न था। गोशाला की तरफ कुछ रोने की-सी आवाज आई । जाकर देखा, तो हमारा पुराना धोबी, जिसने वीम वास नक मेरे बाप को सेवा की थी, पड़ा है। मैंने उसका नाम लेकर आवाज दी, तो उसने आँख खोली, और देखकर रो-रोकर कहने लगा-साहव ! उन्होंने सबको मार डाला। यह सुनते ही मैं वेहोश-सा हो गया । और मैं बैठ गया। धात्री से मैंने पानी मांगा । उसने अपने घर से लाकर दिया । पानी पीकर मैंने उससे पूछा- क्या और कैसे हुआ ? पहले तो वह खूब रोया । फिर कहा कि साहब, जब तुम चले गए, तो दोनो मेम साहब और बच्चे एक जगह भय- भीत होकर बैठ गए। क्योकि गली-कूचों में वड़ा शोर हो रहा था, और बंदूकों की आवाज भी आती थीं। यह हाल देखकर क्लाके साहब ने अपनी शिकारी बदूक निकाली, और उसको भरा । मैंने कहा, अगर आप कहें, तो दरवाजा -
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