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ग़दर के पत्र
मैंने जवाब न दिया, और वहाँ से चल दिया। यह गली बीच
शहर में न थी, बल्कि शहर की फ़सील के निकट थी। बनिए
इसमें न रहते थे, बल्कि बंगाली रहते थे। जितने बदमाश थे,
सभी शहर की लूट में लगे थे। मुझे इस रास्ते में केवल दो मनुष्य
मिले। वे मुझे जानते थे। उन्होंने कहा -- अपने को बचाओ।
अंत में मैं मकान के पिछवाड़े तक पहुँच गया। यहाँ एक
बाग़ था। मैं एक खिड़की से भीतर गया। उस समय चार बजे
थे। क्योंकि मैं दिन-भर अपनी छत के नीचे छिपा रहा था।
इसमें समय बीत गया। वहाँ भी मैंने बंदूक़ों की आवाज़ें सुनी
थीं। और, साथ ही एक बहुत ज़ोर का धमाका और भूकंप-सा
भी आया। बाद को मालूम हुआ कि मेगज़ीन उड़ाया गया था।
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