कि चीख मारकर गिर गया। इस बीच में लोग वहाँ जमा
होने लगे। मैं वहाँ से भी भागकर एक व्यापारी की दूकान
पर पहुँचा। वहाँ बहुत-सी गाड़ियाँ खड़ी थीं। एक गाड़ी
की छत टूटी हुई ज़मीन पर पड़ी थी। उसमें मेरे लिये काफ़ी
जगह थी। मैं उसमें घुसकर बैठ गया। मैंने चार-पाँच आद-
मियों को यह कहते सुना कि इधर ही को गया है। मैं मारे
डर के ज़रा भी आराम से न बैठ सका। उनके जाने के कुछ
देर बाद वहाँ कोई न था। अब मुझे अपने बाल-बच्चों और,
क्लार्क साहब की स्त्री का खयाल आया। मैं अपने दिल में सोचता
था कि क्या वे सब मारे गए। यह विचार आते ही मैने मन
में कहा, चाहे कुछ हो, मुझे घर जाना न चाहिए। इस विचार
ने मुझे पागल बना दिया। अभी इसी सोच-विचार में पड़ा
था कि दुबारा शोर-ग़ुल सुन पड़ा। और विद्रोहियों का एक
बड़ा भारी दल गालियाँ बकता उधर से गुज़रा। इस बीच में
दो-तीन औरतें घरों से निकलकर छत के पास आ खड़ी हुई।
उनकी गोद में एक बच्चा भी था। बच्चा उसके नीचे (छत कों)
झाँकने लगा, तो किसी ने कोठे से आवाज़ दी कि अंदर आकर
दरवाज़ा बंद कर लो। वहाँ मैं देर तक छिपा रहा, क्योंकि यह
बाज़ार बहुत चलता था। मैंने सोचा, इसमें हर जगह आदमी
मिलेंगे। पर दुबारा मुझे अपने बच्चों का खयाल आया, और मैंने
फ़ैसला कर लिया -- कुछ भी हो, मुझे घर चलना चाहिए। घर
की ओर चला। मैं चला ही था कि एक स्त्री ने कहा, कौन है?
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तेरहवीं कथा