एक सोंटा हाथ में लेकर गली में गया। वहाँ कोई न था। मैं
और आगे बढ़ा। वहाँ भी कोई न था। अंत में गली पार
करके दूसरे कूचे में गया। वहाँ भी कोई न था। केवल एक
बूढ़ा आदमी दूकान पर बैठा था। मैं थोड़ी देर वहाँ ठहरा,
तो सीधे हाथ की तरफ़ एक दल नज़र आया। वह मुझसे
दूर था, और सिर्फ़ शोर ही सुनाई पड़ता था। मैं इस विचार
से कि वे मेरे ही मकान पर आवेगे, वहीं थोड़ी देर खड़ा रहा,
और उनको देखता रहा। इसके बाद पीछे से शोर सुनाई
दिया। मुड़कर देखा, तो एक दल मेरे दरवाज़े में घुस रहा था।
मुझे देखकर कुछ आदमियों को मेरी तरफ़ भेजा। यह देखकर
मैं फौरन् बाईं तरफ़ के रास्ते में घुस गया। यहाँ से एक
रास्ता बहुत फेर से मेरे मकान की ओर भी जाता था। उस
दरवाज़े पर कुछ स्त्रियाँ और एक या दो आदमी खड़े थे।
पर उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा। वहाँ से भी आगे भागा।
ज्यादा दूर न गया था कि दो आदमी और गली से भागते
हुए निकले, और मेरी तरफ़ यह कहते हुए आए कि मारो
फ़िरंगो को। इनमें से एक के हाथ में तलवार थी और दूसरे
के पास लाठी। पास आने पर मैं भी ठहरा, और तलवारवाले
के एक ऐसा सोंटा सिर पर मारा कि वह ज़मीन पर गिर
गया। दूसरे ने मेरे सिर पर लाठी मारी। पर मैंने सिर
झुका लिया -- वह लाठी कंधे पर छूती हुई चली गई। मैंने
जो अपनी लाठी घुमाई, तो उसकी रान पर इस ज़ोर से लगी
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ग़दर के पत्र