लोगों को गिरफ्त़ारी के लिये ठहरे हुए थे। उनसे बचकर
आगे बढ़े। चूँकि हज़ारों मज़दूर वहाँ काम कर रहे थे, इस-
लिये विद्रोहियों ने हमको नहीं देखा। जब हम बटलर साहब
के बँगले पर पहुँचे, तो मालुम हुआ कि साहब अभी थोड़ी देर
हुई, चले गए। कुछ देर हम वहाँ ठहरे। वहीं हमने मेगज़ीन
का उड़ना देखा। इसके बाद बँगले से चले, और ४ मील पर
बटलर साहब को जा लिया। वहाँ एक बँगला था। इसमें
उतरे, खाना खाया, और फिर रवाना होकर फ़रीदाबाद, जो
यहाँ से ६ मील था, पहुँच गए।
यहाँ हमने चाय पी, और बहुत होशियारी से रहे। आधी
रात के पीछे बल्लभगढ़ का राजा हमारे पास आया और कहा,
५० सवार तुम्हारी तलाश में आ रहे हैं। उचित है कि तुम
अपने ख़िदमतगारों का लिबास पहनकर मेरे क़िले में आ
जाओ, मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। यह कहकर वह अपने क़िले
में गया, जिससे वहाँ कोई झगड़ा खड़ा न हो जाय। वहाँ से
उसने एक सवार हमें लेने भेजा। हम क़िले में पहुँचे। राजा
साहब ने हमें एक मकान में छिपा दिया। हम पहुँचे ही थे
कि वे ५० सवार भी आ पहुँचे। पर उसके नौकरों ने कह
दिया कि साहब लोग आगे बढ़ गए। वे तो यह सुनकर आगे
बढ़े, और हम एक नींद लेकर दूसरे गाँव की तरफ़ चले, जो
बल्लभगढ़ से ६ मील के अंतर पर था। हमारी रक्षा के लिये
राजा का एक रिसाला हमारे साथ था। इस गाँव में एक छोटे-से