पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१३५

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दसवी कथा एक मेम-जो सिकंदर साहब के खानदान से हिंदोस्तानी पोशाक पहनकर मेरठ चली गई थीं-दिल्ली के विद्रोह का हाल इस प्रकार लिखती हैं- "दरयागंज में जितने ईसाई रहते थे, वे सब विद्रोह के दिन एक कोठे पर जमा हुए, और तीन-चार दिन तक वहीं डटे रहे । जब सिपाहियों ने देखा कि बंदूक के ज़ोर से वे यहाँ से नहीं उतरेंगे, तब एक नौपनी तोप लाए। उसके एक गोले से सब-कंडक्टर स्टिल साहब मर गए। जब तक ये लोग कोठे पर रहे, खाने-पीने की कोई चीज इनके पास नहीं पहुंची। गरीब बेचारे छोटे-छोटे बच्चे भूख-प्यास से छटपटा रहे थे। इन दुष्ट निर्दयियों ने लड़कों से कहा, अगर तुम नीचे उतर आओ, तो हम तुम्हें खाना-पानी सब कुछ देंगे । पर जब वे नीचे उतरे, तब फौरन कत्ल का संकेत किया, और सबका वध कर डाला। फिर थोड़ी देर बाद कत्लेआम शुरू हो गया। इस हंगामे में जो लोग करल हुए, उनमें से कुछ के नाम ये हैं- मेगज़ीन के ३ कंडक्टर मय बाल-बच्चों के, मेसर्ज पराइस मय बाल-बच्चों और दो नवासों के, मेसर्जरेली मय दो बच्चों के, भामूस साहब की मेम आदि।"