. पत्र न. २ (यह पत्र जनरल सर हेनरी बनार्ड ने जॉर्ज कार्निकवारेंस के नाम १७ जून, सन् ५७ को भेजा था।) प्रिय वारेंस! किसी असाधारण प्रकार के अचल व्यक्ति ने मेरी बाती जायन कर दी है । यह मेरे पास केवल एक ही थी। हमारे बंगले में दो संदूक हैं, जो मामूली देवदार की लकड़ी के हैं, और इनके अंदर टीन मढ़ा है। सबसे छोटे में एक बहुत बड़ा भूरे रंग का रेजोमेंटल लोट (रक्खा हुश्रा) है। अगर आप कृपा करके बक्स खोलकर कोट मेरे पास सेज दें, तो बड़ा अनुग्रह होगा । अभी हम दिल्ली के सामने पड़े हुए हैं, या जैसा किसी ने हँसी- रूप में कहा है-'हम अभी तक देहली के पीछे हैं, जो फसीलें मैदानी तोपों के द्वारा तोड़ी जानेवाली थी, १८ पौंड वजनी गोलों के मुकाबले में ज्यों-की-त्यों वैसी ही रजबूती से कायम हैं। हम महल पर गोलाबारी करते रहते हैं, और अभी तक किए जा रहे हैं। राइफल्ड पल्टन के एक गारे ने एक हिंदोस्तानी सिपाही को बंदूक का निशाना बनाया, और उसकी ८४ >
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