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छठी कथा १०६ अंत में जब किसी फौज के आने की खबर न सुनी तो उसने हमको राय दी कि नहर के किनारे-किनारे करनाल चलना उचित है। निदान, वे रास्ता बताते चले, और गाँव के विद्रोहियों से भी हमारी रक्षा का प्रबंध किया । और, इस क़दर हमारा आतिथ्य किया कि हम कभी बदला न दे सकेंगे। अंतत: हम सकुशल करनाल पहुँच गए। नवाब लेफ्टिनेंट गवर्नर बहादुर यह सुनकर बहुत प्रसन्न होंगे कि देश का यह भाग, जिसमें से हम गुजर रहे थे, इसके ज्यादातर आदमी सरकार के भक्त थे, और ऐसे कड़े विद्राह में भी राजभक्त रहे हैं। केवल गूजरों की कौम विद्रोह करती और गड़वड़ मचाती रही थी, जो बड़ी सड़क के निकट रहते थे।