२ गदर के पत्र किंतु इन चाँदनी रातों में यह काम सरल नहीं प्रतीत होता। मैं केवल छ तोपों का प्रबंध कर सका हूँ। और, इनके चलानेवाले भी बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। ये विद्रोही पशु लगभग रोज़ बाहर निकलते हैं। दो दफा तो मैने उन्हें पूरे नुकसान के साथ वापस भेजा है, परंतु मेरे सिपाही छीजते जाते हैं.. इसलिये मुझे इनकी बहुत कुछ हिम्मत बढ़ानी पड़ती है। असल बात यह है कि वो तारीख से लेकर अब तक ऊपर-नीचे छोटी-छोटी लड़ाइयाँ होती रहीं। वे आठवीं तारीख के बाद से अपनी हानि का अनुमान दो हजार से अधिक करते हैं। पर, मेरा विश्वास है, इसमें वह संख्या नहीं जोड़ी गई है. जिसका पता नहीं चलता। जब आप घृणास्पद ढंग से देहली की फसलों का जिक्र कर रहे थे, तो मैं नहीं समझ सकता कि इससे आप लोगों का अभिप्राय क्या था । २४ पौंड वजनी गोला फेकनेवाली तो बागियों के बुजों में हर जगह चढ़ी हुई हैं, और इनके पीछे लगभग ७ हजार सिपाही भी मौजूद हैं । ऐसी हालत में प्रवेश सरल नहीं। और, मेरे इंजीनियरों का कहना है कि हम बाकायदा खाइयाँ बनाकर किले तक नहीं पहुँच सकते। चाँदनी रातों से शुक्ल पक्ष की रातों से अभिप्राय नहीं है, बल्कि इलसे वे रातें समझना चाहिए, जो मशालों द्वारा प्रकाशित हो उठी थीं।
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