पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१०४

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चौथी कथा डॉ. एस्. एच० हिबिटसन साहब वीस-पचीस दिन तक हिंदोस्तानियों में हैरान व परेशान फिरते रहे, और हर प्रकार के कष्ट तथा अपमान इस बीच में उन्होंने उठाए । तीन-चार बार तो ऐसा हुआ कि वह अपने को मृतप्राय समझने लगे। भागने और यात्रा के समय जो-जो कष्ट और विपत्तियाँ इन पर पड़ी, उनके संबंध में स्वयं इनका क्यान नीचे लिखा जाता है। आशा है, ध्यान-पूर्वक पढ़ा जायगा-- देहली की पहाड़ी पर जो बुर्ज है, उसमें तमाम मेमें इकट्ठी हो गई थीं। जब भय प्रकट हुआ, तो मैं ब्रगेडियर ग्रीवसन के पास गया, और अर्ज की कि आप गोरी पल्टन की कमक और मदद के लिये चिट्ठी लिखें, तो मैं उसे लेकर मेरठ जाऊँगा। तब साहब ने फौरन् चिट्ठी लिखकर मुझे दी। मैं अपने स्त्री. बच्चों तथा अन्य मेमों से मिल-मिलाकर अपने बंगले पर आया, और साधु का भेष बनाकर तथा हाथ-पाँव रेंगकर नगर में होता हुआ नदी के पुल तक पहुँचा । परंतु भाग्य देखिए कि पुल टूटा हुआ था । विवश हो छावनी वापस आया कि मेगजीन के निकट से जो रास्ता है, उधर से यमुना पार करना चाहिए । किंतु इस बीच में तीसरे रिसाले के सवार छावनी में पहुँच .