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गल्प समुच्चय
यह सुनते ही स्वामीजी के नेत्रों से पर्दा हट गया। जागे तो वास्तविक भेद उन पर खुल चुका था कि मन की शान्ति कर्तव्य के पालन से मिलती है। उन्होंने सुखदयाल को जोर से गले
लगाया और उसके रूखे मुँह को चूम लिया।
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