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संन्यासी


"उसका पालन कौन करता है?"

"मेरा भाई और उसकी स्त्री।"

स्वामी प्रकाशानन्द का मुख-मण्डल चमक उठा। हँसकर बोले—

"तुम्हारी अशान्ति का कारण मालूम हो गया, हम कल तुम्हारे गाँव को चलेंगे।"

विद्यानन्द ने नम्रता से पूछा—

"मुझे शान्ति मिल जायगी?"

"अवश्य; परन्तु कल अपने गाँव की तैयारी करो।"

(५)

पालू के मित्रों में लाला गणपतराय का पुत्र भोलानाथ हाँडा बड़ा सज्जन पुरुष था। लखनवाल के लोग उसकी सज्जनता पर लट्टू थे। उसे पालू के साथ प्रेम था। उसके मन की स्वच्छता, उसका भोलापन, उसकी निःस्वार्थता पर भोलानाथ तन-मन से न्योछावर था। जब तक पालू लखनवाल में रहा, भोलानाथ ने सदैव उसकी सहायता की। वे दोनों जोहड़ के किनारे बैठते, धर्मशाला में जाकर खेलते, मन्दिर में जाकर कथा सुनते। लोग देखते, तो कहते, कृष्ण-सुदामा की जोड़ी है। परन्तु कृष्ण के आदर-सत्कार करने पर भी जब सुदामा ने वन का रास्ता लिया, तब कृष्ण को बहुत दुःख हुआ। इसके पश्चात् उनको किसी ने खुलकर हँसते नहीं देखा।

भोलानाथ ने पालू का पता लगाने की बड़ी चेष्टा की; परन्तु